पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३३८

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पदमावत

१ ५६ पदमावत उ पानि, होउ पवन प्रधारी । जसि हों तटू समुद के बारी ॥ मैं तोहि लागि लेई खटवाट । खोजिहि पिता जहाँ लगि घाट हाँ जेहि मिली ताहि बड़ भागे । राजपाट औौ दे* सोहागू ॥ कहि बुझाइ लेइ नृदिर सिधारों । भइ जेवनार न वे बारी ॥ जेहूि रे कंत कर हो विछोवा । कहूँ तेहि , कहाँ सुख सोवा ? कहाँ सुमेरुकहाँ व सेसा। को स तेहि स कहै संदेसा लछिमी जाइ समुद पर्दा रोइ बात यह चालि । कहा समुद वह घट मोरे, ग्रानि मिलावों कालि ॥ ७ ॥ राजा जाइ तहाँ बहि लागा। जहाँ न कोइ फंदेसी कागा ॥ तहाँ एक परवत आस डगा। जहँवाँ सब कपूर औ गा ॥ तेहि चढ़ि हेर कोइ नहि सौथा। दरव सैति किछलाग न हाथा ॥ यहा जो रावन लंक बसेरा। गा हेराइ, कोइ मिला न हेरा ॥ ढा मारि के राजा रोवा । केड चितउरगढ़ राज बिछोवा ! ॥ कहाँ मोर सव दरव भंडारा। कहाँ मोर सब कटक खंधारा । कहाँ तुरंगम बलो। कहाँ मोर हस्ती सिंघली ? रानी पदभावति जोउ बसें जेहि पाईं । ‘मोर मोर ' के खोएडुभूलि गरब अवगाह ॥ ८ ॥ भंवर केतकी ग है जो मिलावै। माँगें राज बेगि सो पाव ।। पदमिनि चाह जहाँ सनि पबों । प नागि नौ पानि धंसावा ॥ खोज परबत मेरु चों ऑो । पहारा। सरग पर पतारा ॥ कहाँ सो गुरु पावों उपदेसो । अगम पंथ जो कहै गवेसी ए? परेड़ें सम्द्र माहें बार पारनहि । अवगाहा। जहाँ न , थाहा साताहन राम संग्रामा। मिला त मोहि न कोइ, विनवीं केहि रोई। बाँधि गवेसी " इनुमृत पाई रामा । को बर होई ? भंवर जो पावा कंवल कहूँमन चोता बह केलि ।

  • आाइ परा कोइ हस्ती, चूर कोन्ह वेलि 1 ।

सो बारी = लड़को। लेॉ खटवाट ८ खटपाटी लगी, रूसकर काम धंधा छोड़ पड़ रहूँगी। (स्त्रियों का रूसकर खाना पीना छोड खीट पर इसलिये पड़ रहना जब तक मेरी बात न मानो जायगी न उलू गो, 'खटपाटी लेना सुख सोवा = सोना रूप उठो' कहलाता है) सुख से (क्रिया का कहा सुमेरु सेसा = नाकाश पाताल का अंतर । बात चालि = बात चलाई। । साधारण यह बँगला से मिलता है)। (८) गा = । धारास्कंधावा, । ड टोला (समुद्र) में । ( ६ ) चाह = खबर । धंसाव = धंसू। गवेसी- खोजी, ढूंढ़नेवाला, । डेरा, तंव अवगाह = अथाह गवषणा करनवाला । १. पाठांतर-मुगम पंथ कर होइ संदेसो । बर बाँधि = रेखा खींचकरदृढ़ प्रतिज्ञा करके (माजकल 'बरंया बाँधि' बोलते हैं) । २. पाठांतर = को सहाय उपदेसी होई । ।