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पदमावत

धन नक्षत्र औ चंद्रमा औ तारा बल सोइ।
समय एक दिन गवनै लछमी केतिक होइ॥ १२ ॥
पहिले चाँद पुरुब दिसि तारा। दूजे बसै इसान बिचारा॥
तीजे उतर औ चौथे बायब। पचएँ पच्छिउँ दिसा गनाइब॥
छठएँ नैऋत, दक्खिन सतएँ। बसै जाइ अगनिउँ सो अठएँ॥
नवएँ चंद सो पृथिवी बासा। दसएँ चंद जो रहै अकासा॥
ग्यारहें चंद पुरुब फिरि आई। बहु कलेस सौं दिवस बिहाई॥.
असुनी, भरनि, रेवती भली। मृगसिर, मूल, पुनरबसु बली॥
पुष्य, ज्येष्ठा, हस्त, अनुराधा। जो सुख चाहै पूजै साधा॥
तिथि, नछत्र औ बार एक, अस्ट सात खँड भाग।
आदि अंत बुध सो एहि, दुख सुख अंकम लाग॥ १३ ॥
परिवा, छट्टि, एकादसि नंदा। दुइज, सत्तमी, द्वादसि मंदा॥
तीज, अस्टमी, तेरसि जया। चौथि चतुरदसि नवमी खया॥
पूरन पूनिउँ, दसमी, पाँचे। सुकै नंदै, बुध भये नाचै॥
अदित सौं हस्त नखत सिधि लहिए। बीफै पुष्य सत्रवन ससि कहिए॥
भरनि रेवती बुध अनुराधा। भए अमावस रोहिनि साधा॥
राहु चंद्र भू संपति आये। चंद गहन तब लाग सजाये॥
सनि रिक्ता कुज अज्ञा लीजै। सिद्धि जोग गुरु परिवा कीजै॥
छठे नछत्र होइ रवि, ओहि अमावस होइ।
बीचहि परिवा जौ मिलै सुरुज गहन तब होइ॥ १४ ॥
'चलहु चलहु’ भा पिउ कर चालू। घरी न देख लेत जिउ कालू॥
समदि लोग पुनि चढ़ी बिवाना। जेहि दिन डरी सो आइ तुलाना॥
रोवहिं मात पिता औ भाई। कोउ न टेक जौ कंत चलाई॥
रोवहिं सब नैहर सिंघला॥ लेइ बजाइ कै राजा चला॥
तजा राज रावन का केहू? छाँड़ा लंक विभीषन लेहू॥
भरी सखी सब भेंटत फेरा। अंत कंत सौं भयेउ गुरेरा॥
कोउ काहू कर नाहिं निआना। मया मोह बाँधा अरुझाना॥
कंचन कया सो रानी, रहा न तोला माँसु।
कंत कसौटी घालि कै, चूरा गढ़ै कि हाँसु॥ १५ ॥


(१४) नंदा = आनंददायिनी, शुभ। मंदा = अशुभ। जया = विजय देनेवाली। खया = क्षय करनेवाली। सनि रिकता = शनि रिक्ता, शनिवार रिक्ता तिथि या खाली दिन। (१५) समदि = बिदा के समय मिलकर (समदन बिदाई, जैसे पितृ-समदन-अमावस्या)। आइ तुलाना = आ पहुँचा। टेक = पकड़ता है। का केहु = और कोई क्या है? गुरेरा = देखा देखी, साक्षात्कार। निआना = निदान, अंत में। चूरा = कड़ा। हाँसु = हँसली नाम का गले का गहना।