पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३२९

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रत्नसेन बिदाई खंड १४७ बुद्धहि दही चलह चरि भोजन । ओोषद इहै, औौर नहि खोजन ॥ अब सुनु चक्र जोगिनी, ते पुनि थिर न रहार्ति । तीस दिवस चंद्रमा प्राठौ दिसा फिराहि ॥ & ॥ बारह मोनइस चारि सताइस । जोगिनि पच्छिऊँ दिसा गनाइस ॥ नौ सोरह चौबिस ऑौ एका । दक्खिन पुरुव कोन तेइ टेका ॥ तीन इगारह छविस अठारहु। जोगिनि दक्खिन दिसा विचारह ॥ दुइ पचीस सत्ाह औौ दसा। दक्खिन पछिटू कोन विच बसा ॥ तेइस तीस ग्राठ पंद्रहा। जोगिनि होहि पुरुब सामु हा । चौदह बाइस मोनतिस साता । जोगिनि उत्तर दिसि कहें जाता ॥ बीस अठाइस तरह पाँचा। उत्तर पछि कोन तेइ नाचा ॥ एकइस नौ छ जोगिनि उत्तर पुरुब के कोन यह गनि चक्र जोगिनि वाँ जौ चह सिध होन ॥ १० ॥ परिवा, नवमी पुरुव न भाएँ । दूइज दसमी उतर प्रदाएँ तीज एकादसि िप्रगनिउ मारे। चौथि, दुवादसि नैऋत वारें । पाँचढ़े तेरसि दखिन रमेसरी । छठि चौदस पच्छिठे परमेसरी ॥ सतमी पूनि बायब थाछो। अठ अमावस ईसन लाछी ॥ तिथि नछत्र पुनि बार कही । सुदिन साथ प्रस्थान धरोजे ॥ सगुन दुघरिया लगन साधना । भद्रा अ दिकसूल बाँचना ॥ चक्र जोगिनी गने जो जाने । पर बर जोति लछि घर जाने ॥ सुख समाधि प्रानंद घरकीन्ह पयाना पीउ । थरथराइ तन काँपेधरकि धरकि उठ जीउ ॥ ११ ॥ मेष, सिंहधन पूरब बसे। बिरिखमकर कन्या जम दिसं ॥ मिथुन तुला नौ कुंभ पछाहाँ । करक, मीनबिरछिक उतराहाँ ॥ गवन करें काँ उंगरे कोई। सनमुख सोम लाभ बहु होई | दहिन चंद्रमा सुख । बाएँ चंद सरबदात दुख आपदा ॥ अदित होइ उत्तर कहें कालू । सोम काल बायब नह चालू ॥ भौम काल पछिड़ेंबुध निऋता। गुरु दक्खिन औ सुक अगनइता ॥ पूरुब काल सनौचर बसे । पौठि काल देइ चले त हँसे ।॥ (१०) दसा = दस सामुहा के सामने । बाँधु = तू बच् । (११) न भाए = नहीं अच्छा है । अदाएँ घू बाम, रा । अगनिउ ="भाग्नेय दिसा। मारे यातक है । बारे = बचावे । रमेसरों = लक्ष्मी। परमेसरो = देवी। बायब = बायव्य । ईसन = ईशानकोण 1 लाछो = लक्ष्मी । सगन दूथरिया = दघरिया महतै। जो होरा के अनुसार निकाला जाता है और जिसमें दिन का विचार नहीं किया जाता, रात दिन को दो दो घड़ियों में विभक्त करके राशि के अनुसार शुभाशुभ का विचार किया जाता है ? (१३) विरछिक =वृश्चिक राशि। उग निकले। प्रगनइता = ग्राग्नेय दिशा।