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पदमावत

जरै सो घरनी ठावहिं ठाऊँ। दहकि पलास जरै तेहि दाऊँ।
बिरह साँस तन निकसै झारा । दहि दहि परवत होहिं अँगारा॥
भँवर पतंग जरै औ नागा । कोइल, भुजइल, डोमा कागा॥
बन पंखी सब जिउ लेइ उड़े। जल महँ मच्छ दुखी होइ बुड़े॥

महूँ जरत तहँ निकसा, समुद बुझाएउँ आइ ।
समद पानि जरि खार भा, धुआँ रहा जग छाइ॥१२॥

राजै कहा, रे सरग सँदेसी । उतरि आउ मोहि मिलुरे विदेसी।
पाय टेकि तोहि लायौं हियरे । प्रेम सँदेस कहहु होइ नियरे।
कहा बिहंगम जो बनवासी । 'कित गिरही तें होइ उदासी?
जेहि तरिवर तर तुम अस कोऊ । कोकिल काग बराबर दोऊ॥
धरती महँ विषचारा परा। हारिल जानि भूमि परिहरा॥
फिरौं बियोगी डारहिं डारा । करौं चलैं कह पंख सँवारा॥
जियै क घरी घटति नित जाहीं। साँझहिं जीउ रहै, दिन नाहीं॥
जौ लहि फिरौं मुक्त होइ, परौं न पीजर माँह ।
जाउँ बेगि थल आपने, है जेहि बीच निबाह'॥१३॥

कहि संदेस विहंगम चला। आगि लागि सगरौ सिंघला॥
घरी एक राजा गोहरावा। भा अलोप, पूनि दिस्टि न आवा॥
पंखी नाव न देखा पांखा। राजा होइ फिरा कै साँखा॥
जस हेरत वह पंखि हेराना। दिन एक हमहँ करब पयाना॥
जौ लगि प्रान पिंड एक ठाऊँ। एक बार चितउर गढ़ जाऊँ॥
आवा भँवर मंदिर महँ केवा । जीउ साथ लेइ गएउ परेवा॥
तन सिंघल, मन चितउर बसा। जिउ बिसँभर नागिनि जिमि डसा॥

जेति नारि हँसि पूछहिं अमिय बचन जिउ तंत ।।
रस उतरा, विण चढ़ि रहा, ना अोहि तंत न मंत॥१४॥

बरिस एक तेहि सिंघल भयऊ। भोग बिलास करत दिन गयऊ।
भा उदास जो सुना सँदेसू । सँवरि चला मन चितउर देसू॥
कॅवल उदास जो देखा भँवरा । थिर न रहै अब मालति सँवरा॥
जोगी, भँवरा, पवन परावा। कित सो रहै जो चित्त उठावा॥


दाऊँ = दावाग्नि । भुगहल = भुजंगा नाम का काला पक्षी । डोमा कागा-3 बड़ा कौवा जो सर्वांग काला होता है। (१३) सरग सँदेसी- स्वर्ग से (ऊपर से) संदेसा कहनेवाला। गिरही = गह। हारिल...परिहरा- कहते हैं, हारिल भमि पर पर नहीं रखता, चंगुल में सदा लकडी लिए रहता है जिसमें पर भमि पर न पड़े । चलै कहाँ = चलने के लिये। (१४) गोहरावा = पुकारा । साँखा = शंका, चिता । पिड = शरीर। मंदिर महँ केवा = कमल (पद्यावती) के घर में। बिसंभर = बेसँ भाल, सुध बुध भूला हया। जेति नारि = जितनी स्त्रियाँ हैं सद, जिउ तंत = जी की वात (तत्व) । (१५) पराया = पराए, अपने नहीं ।