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नागमती संदेश खंड
१४१

तोहि अस नाहीं पंखि भुलाना। उडै सो प्राव जगत महँ जाना॥
एक दीप का पाएउँ तोरे। सब संसार पाँय तर मोरे॥
दहिने फिरै सो अस उजियारा । जस जग चाँद सुरुज मनियारा॥

मुहमद दाई दिसि तजा, एक स्रवन, एक आँखि ।
जब तें दाहिन होइ मिला, बोल पपीहा पाँखि॥९॥

हौं धुव अचल सौं दाहिनि लावा। फिर सुमेरु चितउर गढ़ आवा॥
देखउँ तोरे मँदिर घमोई। मातु तोरि आँघरि भइ रोई॥
जस सरवन बिन अंधी अंधा । तस ररि मुई तोहि चित बंधा॥
कहेसि मरौं, को कांवरि लेई ? पुत्र नाहिं, पानी को देई?
गई पियास लागि तेहि साथा। पानि दीन्ह दसरथ के हाथा।
पानि न पियै, आगि पै चाहा। तोहि अस सुत जनमे अस लाहा।
होइ भगीरथ करु तहँ फेरा । जाहि सवार, मरन कै बेरा॥

तू सपूत माता कर, अस परदेस न लेहि ।
अब ताईं मुइ होइहि, मुए जाइ गति तेहि ।। १०॥

नागमती दुख बिरह अपारा। धरती सरग जरै तेहि झारा॥
नगर कोट घर बाहर सूना । नौजि होइ घर पुरुष बिहूना॥
तू काँवरू परा बस टोना। भला जोग, छरा तोहि लोना॥
वह तोहि कारन मरि भइ छारा। रही नाग होइ पवन अधारा॥
कहुँ बोलहि 'मो कहँ लेइ खाह'। माँसू न, काया रचै जो काह।
बिरह मयूर, नाग वह नारी । त मजार करु बेगि गोहारी॥
माँसु गिरा, पाँजर होइ परी। जोगी ! अबहुँ पहुँच लेइ जारी॥

देखि बिरह दख ताकर मैं सो तजा बनवास ।।
आएउँ मागि समुद्रतट तबहुँ न छाडै पास ॥११॥

अस परजरा विरह कर गठा । मेघ साम भए धूम जो उठा।
दाढ़ा राहु, केतु गा दाधा । सूरज जरा, चाँद जरि आधा॥
औ सब नखत तराई जरहीं। टूटहि लुक, धरति महँ परहीं।


तोहि पास...भुलाना = पक्षी तेरे ऐसा नहीं भूले हैं, वे जानते हैं कि हम उड़ने के लिये इस संसार में पाए हैं। मनियार = रौनका, चमकता हया । मुहमद बाँई ऑखि = मुहम्मद कवि ने बाईं ओर आँख और कान करना छोड़ दिया (जायसी काने भी थे) अर्थात वाम मार्ग छोडकर दक्षिण मार्ग का अनुसरण किया। बोल = कहलाता है। (१०) दाहिन लावा = प्रदक्षिणा की। घमोई = सत्यानासी या भंडभाँड़ नामक कँटीला पौधा जो खंडहरों या उजड़े मकानों में प्रायः उगता है। सवार = जल्दी। (११) नौजि = न, ईश्वर न करे (अवध)। काँवरू = कामरूप में, जो जादू के लिये प्रसिद्ध है। लोना- लोना चमारी जो जादू में एक थी। मजार = बिल्ली । जरी = जड़ी बूटी। (१२) परजरा = प्रज्वलित हुआ, जला। गठा = गट्ठा, ढेर ।