गिरि, समुद्र, ससि, मेघ, रवि, सहि न सकहिं वह आगि ।
मुहमद सती सराहिए, जरै जो अस पिउ लागि ॥ १५॥
तपै लागि अब जेठ असाढी। मोहि पिउ बिन छाजनि भइ गाढ़ी॥
तन तिनउर भा, झरौं खरी। भइ बरखा, दुख प्रागरि जरी॥
बघ नाहि प्रो कंध न कोई। बात न अाव कहीं का रोई?॥
साठि नाठि, जग बात को पछा? बिन जिउ फिरै मज तन छेछा॥
भई दुहेली टेक बिहनी । थाम नाहिं उठि सके न थूनी॥
बस मघ चवहि नैनाहा। छपर छपर होइ रहि बिन नाहा॥
कारी कहाँ ठाट नव साजा? । तम बिन कंत न छाजनि छाजा॥
अबहूँ मया दिस्टि करि, नाह निठुर ! घर आउ ।
मंदिर उजार होत है, नव कै आइ बसाउ ॥ १६ ॥
राइ गंवाए बारह मासा। सहस सहस दुख एक
तिल तिल बरख बरख परि जाई। पहर पहर जुग जुग न
सा नहि आवै रूप मरारी । जासौं पाव सोहाग सुनारी॥
साझ भए झुरि झरि पथ हेरा। कोन सो घरी करै पिउ फेरा!
दाह कोइला भइ कंत सनेहा । तोला माँसू रही नहि देहा॥
रकत न रहा, बिरह तन गरा। रती रती होइ नैनन्ह ढरा॥
पाय लागि जोरै धनि हाथा। जारा नेह, जड़ाव नाथा॥
बरस दिवस धनि रोइ कै, हारि परी चित झखि ।
मानुस घर घर बझि कै.बझै निसरी पंखि ।। १७॥
भई पुछार, लीन्ह बनबासु । बैरिनि सवति दीन्ह चिलवासू॥
हाइ खग बान बिरह तन लागा। जौ पिउ आवै उड़हि तो कागा॥
हारिल भई पंथ मैं सेवा। अब तहँ पठवौं कौन परेवा।।
धारा पंडुक कह पिउ नाऊँ। जौं चितरोख न दूसर ठाऊ॥
(१६) तिनउर = तिनकों का ठाट । भरौं = सुखती हूँ। बंध = ठाट बाँधन ।।। कध न कोई = अपने ऊपर (सहायक) भी कोई नहीं है। साठि नाठि पूजी नष्ट हई। मज तन का = बिना बंधन की मूज क एता ना। थूनी = लकड़ी की टेक। छपर छपर = तराबोर । कोरौं= छाजन की ठाट में लगे बाँस या लकडी । नव के नए सिरे सहस सहस सास.. एक एक दीर्घ निवा दाघ निश्वास सहस्रों दखों से भरा था फिर बारह महीने कितने दुःखा स भरे बीत होंगे। तिल तिल...परि जाई - तिलभर समय एक एक वर्ष के इतना पड़ जाता है। सेराई समाप्त होता है । सोहाग- (क) सौभाग्य, (ख) साहागा। सुनारी = (क) वह स्त्री, (ख) सूनारिन। झरि-सुखकर ।(१८) पुछार = (१) पूछनेवाली, (ख) मयूर । चिलवाँस = चिडिया फंसाने का एक फंदा। कागा - स्त्रियाँ बैठे कौवे को देखकर कहती हैं कि 'प्रिय आता हो तो उड़ जा। (१८) हारिल = (क) थकी हई, (ख) एक पक्षी। धौरी = (क) सफेद, (ख) एक चिड़िया। पंडुक = (क) पोली, (ख) एक चिड़िया । चितरोख == (क) हृदय में रोष, (ख) एक पक्षी।