तरकि तरकि गइ चंदन चोली। धरकि धरकि हिय उठै न बोली॥
अही जो कली कँवल रसपूरी। चूर चूर होइ गईं सो चूरी॥
देखहु जाइ जैसि कुंभिलानी। सुनि सोहाग रानी बिहँसानी॥
सेइ सँग सबही पदमिनि नारी। आई जहँ पदमावति बारी॥
आइ रूप सो सबही देखा। सोनबरन होइ रही सो रेखा॥
कुसुम फूल जस मरदै, निरँग देख सब अंग:
चंपावति भइ वारी, चूम केस औ मंग॥ ४३ ॥
सब रनिवास बैठ चहुँ पासा। ससि मंडल जनु बैठ अकासा॥
बोलीं सबै ‘बारि कुँभिलानी। करहु सँभार, देहु खँड़वानी॥
कँवल कली कोमल रंग भीनी। अति सुकुमारी, लंक कै छीनी॥
चाँद जैस धनि हुत परगासा। सहस करा होइ सूर बिगासा॥
तेहिके झार गहन अस गही। भई निरंग, मुख जोति न रही॥
दरब बारि किछु पुन्नि करेहू। औ तेहि लेइ संन्यासिहि देहू॥
भरि कै थार नखत गजमोती: वारा कीन्ह चंद कै जोती॥
कीन्ह अरगजा मरदन; औ सखि कीन्ह नहानु।
पुनि भइ चौदसि चाँद सो, रूप गएउ छपि भानु॥ ४३ ॥
पुनि बहु चीर आन सब छोरी। सारी कंचुकि लहर पटोरी॥
फुँदिया और कसनिया राती। छायल बँद लाए गुजराती॥
चिकवा चीर मघौना लोने। मोति लाग औ छापे सोने॥
सुरँग चीर भल सिंघलदीपी। कीन्ह जो छापा धनि वह छीपी॥
पेमचा डरिया औ चौधारी। साम, सेत, पीयर, हरियारी॥
सात रंग औ चित्र चितेरे। भरि कै दीठि जाहिं नहिं हेरे॥
चँदनौता औ खरदुक भारी। बाँसपूर झिलमिल कै सारी॥
पुनि अभरन बहु काढ़ा, अनबन मोति जराव।
हेरि फेरि निति पहिरै, जब जैसे मन भाव॥ ४४ ॥
(४३) निरंग = विवर्ण, बदरंग। पवन अधारी = इतनी सुकुमार है कि पवन ही के आधार पर मानों जीवन है। अही = थी। सोनबरन...रेखा = ऊपर कह आए हैं कि ‘रावन रहसि कसौटी कसी'। वारी भइ = निछावर हुई। मंग = माँग। (४६) झार = ज्वाला, तेज। बारि = निछावर करके। वारा कीन्ह = चारों ओर घूमाकर उत्सर्ग किया। (४४) लहर पटोरी = पुरानी चाल का रेशमी लहरिया कपड़ा। फुँदिया = नीवी या इजारबंद के फुलरे। कसनिया = कसनी, एक प्रकार की अँगिया। छायल = एक प्रकार की कुरती। चिकवा = चिकट नाम का रेशमी कपड़ा। मघौना = मेघवर्ण अर्थात् नील का रंगा कपड़ा। पेमचा = एक प्रकार का कपड़ा (?)। चौधारी = चारखाना। हरियारी = हरी। चितेरे = चित्रित। चंदनौता एक प्रकार का लहँगा। खरदुक = कोई पहनावा (?)। बाँसपूर = ढाके की बहुत महीन तंजेब जिसका थान बाँस की पतली नली में आ जाता था। झिलमिल = एक बारीक कपड़ा। अनबन = अनेक।