आजु मरम मैं जाना सोई। जस पियार पिउ और न कोई॥
डर तो लगि हिय मिला न पीऊ। भानु के दिस्टि छूटि गा सीऊ॥
जत खन भानु कीन्ह परगासू। कँवल कली मन कीन्ह बिगासू॥
हिये छोह उपना औ सीऊ। पिउ न रिसाउ लेउ बरु जीऊ॥
हुत जो अपार बिरह दुख दूखा। जनहुँ अगस्त उदय जल सूखा॥
हौं रँग बहुतै आनति, लहरैं जैस समुंद।
पै पिउ कै चतुराई, खसेउ न एकौ बुंद॥ ३९ ॥
करि सिंगार तापहँ का जाऊँ। ओही देखहुँ ठाँवहि ठाँऊँ॥
जौ जिउ मँह तौै उहै समाना। देखौ तहाँ नाहिं कोउ आना॥
नैन माँह है उहै समाना। देखौ तहाँ नाहिं कोउ आना॥
आपन रस आपुहि पै लेई। अधर सोइ लागे रस देई॥
हिया थार कुच कंचन लाडू। अगमन भेंट दीन्ह कै चाँड़ू॥
हुलसी लंक लंक सौ लसी। रावन रहसि कसौटी कसी॥
जोबन सबै मिला ओहि जाई। हौं रे बीच हुँत गइउँ हेराई॥
जस किछु देइ धरे कहँ,आपन लेइ सँभारि।
रहसि गारि तस लीन्हेसि, कीन्हेसि मोहि ठँठारि॥ ४० ॥
अनु रे छबीली! तोहि छवि लागी। नैन गुलाल कंत सँग जागी॥
चंप सुदरसन अस भा सोई। सोनजरद जस केसर होई॥
बैठ भौंर कुच नारंग बारी। लागे नख, उछरीं रँग धारी॥
अधर अधर सों भीज तमोरा। अलकाउर मुरि मुरि गा तोरा॥
रायमुनी तुम औ रतमुही। अलिमुख लागि भई फुलचुहीं॥
जैस सिंगार हार सौं मिली। मालति ऐसि सदा रहु खिली॥
पुनि सिंगार करु कला नेवारी। कदम सेवती बैठु पियारी॥
कुंद कली सम बिगसी, ऋतु बसंत औ फाग।
फूलहु फरहु सदा सुख, औ सुख सुफल सोहाग॥ ४१ ॥
कहि यह बात सखी सब धाईं। चंपावति पहँ जाइ सुनाई॥
आजु निरँग पदमावति बारी। जीवन जानहुँ पवन अधारी॥
दूखा = नष्ट हुआ। खसेउ = गिरा। (४०) चाँड़ू = चाह। जस किछु देइ धरै कहँ = जैसे कोई वस्तु धरोहर रखे और फिर उसे सहेजकर ले ले। ठठारि = खुक्ख। (४१) चंप सुदरसन...होई = तेरा वह सुंदर चंपा का सा रंग जर्द चमेली सा पीला हो गया है। उछरी = पड़ी हुई दिखाई पड़ीं। धारी = रेखा। तमोरा = तांबूल। अलकाउर = अलकावलि। तोरा = तेरा। रायमुनी = एक छोटी सुंदर चिड़िया। रतमुहीं = लाल मुँहवाली। फुलचूहीं = फुलसँघनी नाम की छोटी चिड़िया। सिंगारहार (क) सिंगार को अस्त व्यस्त करनेवाला, नायक। (ख) परजाता फूल। (४१) कला = नकलबाजी, बहाना (अवधी)। नेवारी = (क) दूर कर। (ख) एक फूल। कदम सेवती = (क) चरणों को सेवा करती हुई। (ख) कदंब और सेवती फूल। (मुद्रा अलंकार)।