औ जोबन मैमंत बिधाँसा। बिचला बिरह जीउ जो नासा॥
टूटे अंग अंग सब भेसा। छूटी माँग, भंग भए केसा॥
कंचुकि चूर, चूर भइ तानी। टूटे हार, मोति छहरानी॥
बारी, टाँण सलोनी टूटी। बाहूँ कँगन कलाई फूटी॥
चंदन अंग छूट अस भेंटी। बेसरि टूटि, तिलक गा मेटी॥
पुहुप सिंगार सँवार सब, जोबन नवल बसंत।
अरगज जिमि हिय लाइ कै, मरगज कीन्हेउ कंत॥ ३३ ॥
बिनय करै पदमावति बाला। सुधि न, सुराही पिएउ पियाला॥
पिउ आयसु माथे पर लेऊँ। जो माँगै नइ नइ सिर देऊँ॥
पै, पिय! वचन एक सुनु मोरा। चाखु, पिया! मधु थोरै थोरा॥
पेम सुरा सोई पै पिया। लखै न कोइ कि कहू दिया॥
चुवा दाख मधु जो एक बारा। दूसरि बार लेत बेसँभारा॥
एक बार जो पी कै रहा। सुख जीवन, सुख भोजन लहा॥
पान फूल रस रंग करीजै। अधर अधर सौं चाखा कीजै॥
जो तुम चाहौ सो करौं, ना जानौं भल मंद।
जो भावै सो होइ मोहिं, तुम्ह, पिउ! चहौं अनंद॥ ३४ ॥
सुनु, धनि! पेम सुरा के पिए। मरन जियन डर रहै न हिए॥
जेहिं मद तेहि कहाँ संसारा। की सो घूमि रह, की मतवारा॥
सो पै जान पिये जो कोई। पी न अघाइ, जाइ परि सोई॥
जा कहँ होइ बार एक लाहा। रहै न ओहि बिनु, आही चाहा॥
अरथ दरब सो देइ बहाई। की सब जाहु, न जाइ पियाई॥
रातिहु दिवस रहै रस भीजा। लाभ न देख, न देखै छीजा॥
भोर होत तब पलुह सरीरू। पाव खुमारी सीतल नीरू।
एक बार भरि देहु पियाला, बार बार को माँग? ।
मुहमद किमि न पुकारै, ऐसे दाँव जो खाँग? ॥ ३५ ॥
भा बिहान ऊठा रबि साईं। चहुँ दिसि आईं नखत तराई॥
सब निसि सेज मिला ससि सूरू। हार चीर बलया भए चूरू॥
सो धनि पान, चून भइ चोली। रँग रँगीलि निरँग भइ भोली॥
(३३) विधँसि = विध्वंस की गई, बिगड़ गई। जीउ जो नासा = जिसने जीव की दशा बिगाड़ रखी थी। तानी = तनी, बंद। बारी = बालियाँ। अरगज = अरगजा नामक सुगंध द्रव्य जिसका लेप किया जाता है। मरगज = मला दला हुआ। (३४) नइ = नवाकर। (३५) जाइ परि सोई = पड़कर सो जाता है। छीजा = क्षति , हानि। पलुह = पनपता है । खाँग = कमी हुई। (३६) रवि = सूर्य और रत्नसेन। साईं = स्वामी। नखत तराईं = सखियाँ। बलया = चूड़ी। पान = पके पान सी सफेद या पीली। चून = चूर्ण। निरंग = विवर्ण, बदरंग।