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पदमावती रत्नसेन भेंट खंड

बोलौं रानि! बचन सुनु साँचा। पुरुष क बोल सपथ औ बाचा॥
यह मन लाएउँ तोहिं अस, नारी। दिन तुइ पासा औ निसि सारी॥
पौ परि बारहि बार मनाएउँ। सिर सौं खेलि पैंत जिउ लाएउँ॥
हौं अब चौक पंज ते बाँची। तुम्हू बिच गोट न आवहि काँची॥
पाकि उठाएउँ आस करीता। हौं जिउ तोहि हारा, तुम जीता॥
मिलि कै जुग नहिं होहु निनारी। कहाँ बीच दूती देनिहारी॥
अब जिउ जनम जनम तोहि पासा। चढ़ेउँ जोग, आएउँ कबिलासा॥
जाकर जीव बसै जेहि, तेहि पुनि ताकर टेक।
कनक सोहाग न बिछुरै, औटि मिलै होइ एक॥ २४ ॥
बिहँसी धनि सुनि कै सत बाता। निहचय तू मोरे रँग राता॥
निहचय भौंर कँवल रस रसा। जो जेहि मन सो तेहि मन बसा॥
जब हीरामन भएउ सँदेसी। तुम्ह हुत मँडप गइउँ, परदेसी॥
तोर रूप तस देखेउँ लोना। जनु, जोगी! तू मेलेसि टोना॥
सिधि गुटिका जो दिस्टि कमाई। पारहि मेलि रूप बैसाई॥
भुगुति देइ कहँ मैं तोहि दीठा। कँवल नैन होइ भौंर बईठा॥
नैन पुहुप, तू अलि भा सोभी। रहा बेधि अस, उड़ा न लोभी॥
जाकरि आस होइ जेहि, तेहि पुनि ताकरि आस।
भौंर जो दाधा कँवल कहँ, कस न पाव सो बास? ॥ २५ ॥
कौन मोहनी दहुँ हुति तोही। जो तोहि बिथा सो उपनी मोही॥
बिनु जल मीन तलफ जस जीऊ। चातकि भइउँ कहत 'पिउ पीऊ'॥
जरिउँ बिरह जस दीपक बाती। पंथ जोहत भइ सीप सेवाती॥
डाढ़ि डाढ़ि जिमि कोइल भई। भइउँ चकोरि, नींद निसि गई॥
तोरे पेम पेम मोहिं भएऊँ। राता हेम अगिनि जिमि तएऊ॥
रवि परगासे कँवल बिगासा। नाहिं त कित मधुकर, कित बासा॥
तासौं कौन अँतरपट, जो अस पीतम पीउ।
नेवछावरि अब सारौं तन, मन जोबन, जीउ॥ २६ ॥


(२४) बाचा = प्रतिज्ञा। पैंत लाएउ = दाँव पर लगाया। चौक पंज (क) चोका पंजा दाँव। (ख) छल कपट, छक्का पंजा। तुम्ह बिच...काँची = कच्ची गोटी तुम्हारे बीच नहीं पड़ सकती। पाकि = पक्की गोटी। जुग निनारा होना = (क) चौंसर में जुग फूटना। (ख) जोड़ा अलग होना। कहाँ बीच...देनिहारी = मध्यस्थ होनेवाली दूती की कहाँ आवश्यकता रह जाती है। (२५) संदेसो = संदेसा ले जानेवाला। तुम्ह हुँत = तुम्हारे लिये। रूप = (क) रूपा, चाँदी। (ख) स्वरूप। बैसाई = बैठाया, जमाया। कँवल नैन..बईठा = मेरे नेत्रकमल में तू भौंरा (पुतली के समान) होकर बैठ गया। कँवल कहँ = कमल के लिये।