पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९९

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पदमावती रत्नसे न भट खड १-१७ चाँदहि कहाँ -जोति औ श्री करा । सुरुज के जोति चाँद निरमरा । भौंर बास चंपा नहि लेई। मालति जहाँ तहाँ जिज देई । तुम्ह ढंत भएर्ड पौंग कै करा । सिंघलदीप याइ उड़ि परा ॥ सेएऊँ महादेव कर बारू। तजा अन्न, भा पवन अहारू ॥ आस में प्रीति गाँकि हि जोरी। कटे न काटे, है न छोरी ।। सी भीख रावनहि दीन्हीं । तू असि निडर नृतरपट कीन्हीं रंग तुम्हारेहि रातेडुचढेरों गगन होइ सूर । जहें ससि सीतल त, तप, मन हींछा, धनि ! ए 1 १८ ॥ जोगि भिखारि! करसि बह बाता। कहसि रंग, देखो नहि राता कापर रंगे रंग नहि होई। उप औौटि रंग भल सोई ॥ चाँद के रंग सुरु जस राता। देखे जगत साँझ , परभाता ॥ दगधि विरह निति होई गारा। श्रोही । अाँच धि संसारा जो मजीठ औौटे बह ग्राँचा। सो रंग जनम न डोलै रॉचा ॥ जरें बिरह जस दीपक बाती। भीतर , उपर हो । जरराता । जरि पास तब होइ कोइल मंसू। फूले राता होइ टेस ॥ पानसुपारीखैर जिमि मेरइ करे चकचून । ती लग रंग न रॉचे जौ लगि होई न चुन ॥ १६ । का धनि ! पान रंग, का चूना। जेहि तन नेह दाध तेहि दूना हीं तुम्ह नेह पियर भा पीन। पेड़ी हंत सोनरास बखानू । सुान तुम्हार संसार बड़ौना। जोग लीन्ह, तन कीन्ह गड़ोना ॥ करह जो किंगरी लेइ बैरागी। नौती होइ बिरह के आागा । फेरि फेरि तन कीन्ह भुजौना । ऑौटि रक्त रंग हिरदय औौना ॥ सूचि सोपारी भा मारा सिह मन सरौता करवत सारा । हाड़ खून भा, । सोइ जो दाध इमि संहा । बिरहंहि दहाजानै सोई जान वह पीराजेहि दुख ऐस सीर रकत पियासा होइ जो, का जाने पर पीर ? ॥ २० ॥ करा = लुत= कला। तुम्ह तुम्हारे लिये । पतंग के करा = पतंग के रूप का । बारू= द्वार । (१९) देखें..जगत पराभात = संध्या सबेरे जो ललाई दिखाई पड़ती है । धि मजीठ = साहित्य में पक्के राग या प्रेम को मंजिष्ठ हैंनहीं राग कहते । जनम न डोले = जन्म भर दूर होता। चकचून को = चूर्ण करें। चून = चना पत्थर या कंकड़ जलाकर बनाया जाता है। । (२०) पेड़ीख़्त = पेड़ी ही से, जो पान डाल या पेड़ों में ही पुराना होता है उसे भी पेड़ी ही कहते हैं। सोनरास = पका हुआ सफेद या पीला पान। बड़ोना (क) (ख) एक का पान । गड़ौना = एक प्रकार बड़ाई । जाति का पान जो जमीन में गाड़कर पकाया जाता है । नौती = नूतन, ताजी । भुजौना कीन्ह = भूना। श्रीना = आाता है, आा सकता है ।