धौराहर पर दीन्हा बासू। सात खंड जहवाँ कबिलासू।
सखी सहस दस सेवा पाई। जनहुँ चाँद सँग नखत तराई॥
होइ मंडल ससि के चहुँ पासा। ससि सूरहि लेइ चढ़ी अकासा॥
चलु सूरुज दिन अथवै जहाँ। ससि निरमल तू पावसि तहाँ॥
गंध्रबसेन धौरहर कीन्हा। दीन्ह न राजहि, जोगिहि दीन्हा॥
मिलीं जाइ ससि के चहुँ पाहाँ। सूर न चाँपैं पावै छाँहा॥
अब जोगी गुरु पावा सोई। उतरा जोग, भसम गा धोई॥
सात खंड धौराहर, सात रंग नग लाग।
देखत गा कबिलासहि, दिस्टि पाप सब भाग॥ १७ ॥
सात खंड सातौ कबिलासा। का बरनौं जग ऊपर बासा॥
हीरा ईंट कपूर गिलावा। मलयागिरि चंदन सब लावा॥
चूना कीन्ह औटि जगमोती। मोतिहु चाहि अधिक तेहि जोती॥
बिसुकरमै सो हाथ सँवारा । सात खंड सातहि चौपारा॥
अति निरमल नहिं जाइ बिसेखा। जस दरपन महँ दरसन देखा॥
भुइँ गच जानहुँ, समुद हिलोरा। कनकखंभ जनु रचा हिंडोरा॥
रतन पदारथ होइ उजियारा। भूले दीपक औ मसियारा॥
तहँ अछरी पदमावति, रतनसेन के पास॥
सातौ सरग हाथ जनु, औ सातौ कबिलास॥ १८ ॥
पुनि तहँ रतनसेन पगु धारा। जहाँ नौ रतन सेज सँवारा॥
पुतरी गढ़ि गढ़ि खंभन काढ़ी। जनु सजीव सेवा सब ठाढ़ी॥
काहू हाथ चंदन के खोरी। कोई सेंदुर, कोइ गहें सिंधोरी॥
कोइ कुहँकुहँ केसर लिहे रहै। लावै अंग रहसि जनु चहै॥
कोई लिहे कुमकुमा चोवा। धनि कब चहै, ठाढ़ि मुख जोवा॥
कोई बीरा, कोइ लीन्हे बीरी। कोई परिमल अति सुगँध समीरी॥
काहु हाथ कस्तूरी मेदू। कोइ किछू लिहे, लागु तस भेदू॥
पाँतिहि पाँति चहूँ दिसि सब सोंधे कै होट।
माँझ रचा इंद्रासन, पदमावती कहँ पाट॥ १९ ॥
(१७) चहुँ पाहाँ = चारो ओर। चाँपै पावै = दबाने पाता है। (१८) गिलावा = गारा। गच = फर्श। भूले = खो से गए। मसियार = मशाल। अछरी = अप्सरा। (१९) खोरी = कटोरी। सिंधोरी = काठ की सुंदर डिबिया जिसमें स्त्रियाँ इँगुर या सिंदुर रखती हैं। बीरी = दाँत रँगने का मंजन। परिमल = पुष्पगंध, इत्र। सुगंध समीरी = सुगंध वायुवाला। सोंधे = गंधद्रव्य।