पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८४

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पदमावत

१० २ हस्ति क । हनुबृत तबे जूह आाय अगसारी लैंगूर पसारी जस से सब लपट सेन बीच रन आई। लंगूर चलाई ॥ वहुतक टूटि भए नौ खंडा। बहतक जाइ परे बरम्डा ॥ बहुतक भंवत सोह छूतरीखा। रहें जो लाख भए ने लीखा। बहुतक परे समद महेंपरत न पावा खोज । जहाँ गरब तm पीरा, जहाँ हसी तहें रोज 1१६। ॥ ग्राओं का देख राजा। ईसर केर घट रन बाजा ॥ सुना संख जो बिस्नू पूरा। आागे हनुबृत केर लेंगूरा ॥ लीन्हे फिरह लोक बरम्हंडा । सरग पतर लाइ मृदमंडा ॥ बलि। , बासुकि ऑौ इंद्र नरिदृ। राहनखतसूरुज औ औो चंदू ।। जावत दानव राच्यूस पुरे । आाठों बच प्राइ रन जुड़े । जहि कर गरब करत हत राजा। सो सब फिर बैरी हुइ साजा ॥ जहवाँ महादेव रन खड़ा । सीस नाइ नप पायन्ह पर । केहि कारन रिस कीजिये ? हीं सेवक ऑो चेर । जेहि चाहिए तेहि दीजिय, बारि गोसाई केर |१७ll. पुनि महेस अब कीन्ह बसीटी। पहिले करुइ, सोइ अब मीठी | नू गंध्रब राजा जग पूजा । न चौदहसिख देइ को दूजा ॥ हीरामन जो तुम्हार परैवा। गौ चितउर औौ कीन्हेसि सेवा ॥ तेहि बोलाइ पूब्दु “वह देसू । दहें जोगी, की तहाँ नरमू ! हमर कहत न जो तुम्ह मानहु । जो वह कहै सोइ परवानहु ।। जहा बार, बर मावा श्रोका। करहि बियाह धरम बड़ ताका ।। जो पहिले मन मानि न काँधे । परख रतन गाँठि तब बाँध ॥ रतन छपाए ना छपे, पारिख होइ सो परीख । घालि कसौटी दीजिए कनक कचोरी भीख 1१८। सव हीरामन सुना। गएउ रोस, हिरदय मह गुना अज्ञा भई बोलावह सोई। पंडित ढते धोख नहि होई ॥ । एकहि सहत्रक धाए कहत । हीरामनंहि लेइ आाए बाला मार्ग प्रानि मंजसा। मिला निकसि बह दिनकर रूसा। बेगि ॥ अस्तुति करत मिला बह भती। राजे सुना हिये भइ साता ॥ जानतें जरत नागि जल पा । होइ फुलवार रहस हिय भरा। भंवत = चक्कर खाते हए। कुंतरीख = अंतरिक्ष, शाकाश । लीखा=लिख्या, एक मान जो पोस्ते के दाने के बराबर माना जाता है । रोज = रोदम, रोना। (१७) ईसर के महादेव । मृतमंडधूल से छा गया। फिरि = विमुख होकर। बारि=कन्या। (१८) बसोठी = गृत कर्म ।. पहिले करुइ = जो पहले कड़वी थी। परवानहु प्रमाण मानो । काँधे = अँगीकार करता है, स्वीकार करता है। । परीख = परखता है। । (१९) रूसा = रुष्ट । साँती = शांति । फुलवार = प्रफुल्ल । रहस = आानंद । खोज – पता, निशान । ।