पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९९
रत्नसेन सूली खंड

राजा रहा दिस्टि के औंधी। रहि न सका तब भाँट दसौंधी॥
कहेसि मेलि के हाथ कटारी। पुरुष न आछै बैठ पेटारी॥
कान्ह कोपि जब मारा कंसू। तब जाना पूरुष कै बंसू॥
गंध्रबसेन जहाँ रिस बाढ़ा। जाइ भाँट आगे भा ठाढ़ा॥
बोला गंध्रबसेन रिसाई। कस जोगी कस भाँट असाई॥
ठाढ़ देख सब राजा राऊ। बाएँ हाथ दीन्ह बरम्हाऊ॥
जोगी पानि, आगि तू राजा। आगिहि पानि जूझ नहिं छाजा॥
आगि बुझाइ पानि सौं, जूझ न, राजा! बूझु।
लीन्हें खप्पर बार तोहिं, भिक्षा देहि, न जूझु॥ ७ ॥
जोगि न होई, आहि सो भोजू। जानहु भेद करहु सो खोजू॥
भारत ओइ जूझ जौ ओधा। होंहि सहाय आइ सब जोधा॥
महादेव रनघंट बजावा। सुनि कै सबद बरम्हा चलि धावा॥
फनपति फन पतार सौं काढ़ा। अस्टौ कुरी नाग भए ठाढ़ा॥
छप्पन कोटि बसंदर बरा। सवा लाख परबत फरहरा॥
चढ़े अत्र लै कृस्न मुरारी। इंद्रलोक सब लाग गोहारी॥
तैंतिस कोटि देवता साजा। औ छानबे मेघदल गाजा॥
नवौ नाथ चलि आवहिं, औ चौरासी सिद्ध।
आजु महाभारत चले, गगन गरुड़ औ गिद्ध॥ ८ ॥
भइ अज्ञा को भाँट अभाऊ। बाएँ हाथ देइ बरम्हाऊ॥
को जोगी अस नगरी मोरी। जो देइ सेंधि चढैं गढ़ चोरी॥
इंद्र डरै निति नावै माथा। जानत कृस्न सेस जेइ नाथा॥
बरम्हा डरै चतुरमुख जासू। औ पातार बलि बासू॥
मही हलै औ चलै सुमेरू। चाँद सूर औ गगन कुबेरू॥
मेघ डरै बिजुरी जेहि दीठी। कूरुम डरै धरति जेहि पीठी॥
चहौं आजु माँगौं धरि केसा। और को कीट पतंग नरेसा? ॥
बोला भाँट, नरेस सुनु! गरब न छाजा जीउ।
कुंभकरन कै खोपरी, बूड़त बाँचा भीउँ॥ ९ ॥
रावन गरब बिरोधा रामू। ओही गरब भएउ संग्रामू॥
तस रावन अस को बरिबंडा। जेहि दस सीस,बीस, भुजदंडा॥


(७) राजा = गंधर्वसेन। औंधी = नीची। असाई = अताई (?) बेढंगा। (८) भारत = महाभारत का सा युद्ध। ओधा = ठाना, नाँधा। अस्टी कुरी = अष्टकुल नाग। बसंदर = वैश्वानर, अग्नि। फरहरा = फड़क उठे। अत्र = अस्त्र। लाग गोहारी = सहायता के लिये दौड़ा। नवौ नाथ = गोरखपंथियों के नौ नाथ। चौरासी सिद्ध = बौद्ध वज्रयान योगियों के चौरासी सिद्ध। (९) अभाऊ = आदर भाव न जाननेवाला, अशिष्ट, बेअदब। बरम्हाऊ = बरम्हव, आशीर्वाद। बासू = बासुकि। माँगौं धरि केसा = बाल पकड़कर बुला मँगाऊँ। (१०) बरिबंड = बलवंत, बली।