पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८०

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पदमावत

७८ पदमातव जागा विरह तहाँ का, गूद माँसु के हान ?। हीं पुनि साँचा होइ रहा ऑोंहि के रूप समान ॥ ३ ॥ जोगिहि जबह गाढ़ अस परा । महादेव कर शासन टरा । वे हंसि ) पारबती सर्षो कहा। जानलें सूर गहन आस गहा ॥ आाजु चढ़े गढ़ ऊपर तपा। राज गहा सूर तब छपा ॥ जग देख गा कौतुक था। कीन्ह तपा मारै कहें साजू । पारबती सुनि पाँयन्ह परी। चलि, महेस ! देखें एहि घरी ॥ भेस भाँट भाँटिनि कर कीन्हा। श्री हनुवंत वीर सैंग लीन्हा ॥ आए पुत होइ देखन लागी । वह मूति कस सती सभागी ॥ कटक असू देखि है, राजा गरब क रेइ । दंड क दसा न , दहूं का कहें जय देइ ॥ ४ ॥ आासन लेइ रहा हो तपा। ‘पदावति पदमावति' जपा ॥ मन समाधि तासों मुनि लागी । जेहि दरसन कारन वैरागी ॥ रहा समाइ रूप नौ नाऊँ। और न सूझ बार जहूँ जाऊ । आ महस कह करा मदे । जेइ यह पंथ दीन्ह उपदेसू ॥ पारबती पुनि सत्य सराहा। श्री फिर मुख कर चाहा ॥ महेस हिय महेस जों, कहै महेसी। कित सिर नावहि ए परदेसी ? ॥ मरत8 लोन्ह तुम्हारहि नाऊँ। तुम्ह चित किए रहे एहि ठाऊँ । मारत ही परदेसी, राखि लेह एहि बीर । कोइ काह कर नाहीं जो होड़ चले न तीर ॥ ५ ॥ लेइ संदेस सुप्रटा गा तहाँ । सूरी देहि कर रतन जहाँ । देखि रतन हीरामन रोवा। राजा जिउ लोगन्ह हठ खोवा ॥ देखि रुदन हीरामन केरा। रोवहि सब, राजा मुख हेरा । माँगह सब बिधिना सर्ण रोई। उपकार छोड़ाव कोई कहि संदेस सब विपति सुनाई । बिकल बहुतकिछ कहा न जाई ॥ काढ़ि प्रान बैठी लेई हाथा। मरे तौ मरीं, जिौं एक साथा । सुनि संदेस राजा तब हँसा। प्रान प्रान घट घट महें बसा । सूऋटा भाँट दसौंधी भए जिउ पर एक ठाँव । चलि सो जाइ अब देख तहूँ जहें बैठा रह राव ॥ ६ ॥ ।। समान = समाया हुआा।(४) गाढ़ = संकट । देखन लागी। = देखने के लिये । (५) क अदेसू - श्रादेश करता हूँ, प्रणाम करता हूं । चाहा । = ताका। महेसी = पार्वती हि महेस"परदेसी = पार्वती कहती हैं कि जब महेश इनके हृदय में हैं परदेसी किसी सामने तीर होइ तब ये क्यों के सिर झुकाएँ। चले = साथ दे, पास जाकर सहायता करे । (६) हेरा र, ताकते हैं । दसौंधी भाँटों एक जाति । पर हुए की जिउ पर भए = प्राण देने उद्यत ।