(२५) रत्नसेन सूली खंड
बाँधि तपा आने जहँ सूरी। जुरे आइ सब सिंघलपूरी॥
पहिले गुरुहि देइ कहँ आना। देखि रूप सब कोइ पछिताना॥
लोग कहहिं यह होइ न जोगी। राजकुँवर कोइ अहै बियोगी॥
काहुहि लागि भएउ है तपा। हिये सो माल, करहु मुख जपा॥
जस मारै कहँ बाजा तूरू। सूरी देखि हँसा मंसूरू॥
चमके दसन भएउ उजियारा:। जो जहँ तहाँ बीजु अस मारा॥
जोगी केर करहु पै खोजू। मकु यह होइ न राजा भोजू॥
सब पूछहिं, कहु जोगी! जाति जनम औ नाँव।
जहाँ ठाँव रोवै कर हँसा सो कहु केहि भाव॥ १ ॥
का पूछहु अब जाति हमारी। हम जोगी औ तपा भिखारी॥
जोगिहि कौन जाति, हो राजा। गारि न कोह, मारि नहिं लाजा॥
निजल भिखारि लाज जेइ खोई। तेहि के खोज परै जिनि कोई॥
जाकर जीउ मरै पर बसा। सूरी देखि सो कस नहिं हँसा? ॥
आजु नेह सौं होइ निबेरा। आजु पुहुमि तजि गगन बसेरा॥
आजु कया पीजर बँदि टूटा। आजुहिं प्रान परेवा छूटा॥
आजु नेह सौं होइ निनारा। आजु प्रेम सँग चला पियारा॥
आजु अवधि सिर पहुँची, किए जाहु मुख रात।
बेगि होहु मोहिं मारहु, जिनि चालहु यह बात॥ २ ॥
कहेन्हि सँवरु जेहि चाहसि सँवरा। हम तोहि करहिं केत कर भँवरा॥
कहेसि ओहि सँवरौं हरि फेरा। मुए जियत आहौं जेहि केरा॥
औ सँवरौं पदमावति रामा। यह जिउ नेवछावरि जेहि नामा॥
रकत क बूंद कया जस अहही। 'पदमावति पदमावति' कहही॥
रहै त बूँद बूँद महँ टाऊँ। परै त सोई लेइ लेइ नाऊँ॥
रोंव रोंव तन तासौं ओधा। सूतहि सूत वेधि जिउ सोधा॥
हाड़हि हाड़ सबद सो होई। नस नस माँह उठै धुनि सोई॥
(१) करहु मुख = हाथ से भी और मुख से भी। जस = जैसे ही। (२) अवधि सिर पहुँची = अवधि किनारे पहुँची अर्थात् पूरी हुई। बेगि होहु = जल्दी करो। (३) करहिं...भौंरा = हम तुम्हें अब सूली से ऐसा ही छेदेंगे जैसा केतकी के काँटे भौंरे का शरीर छेदते हैं। हरि = प्रत्येक। आहौं = हूँ| ओधा = लगा, उलझा (सं० आबद्ध); जैसे, सचिव सुसेवक भरत प्रबोधे। निज निज काज, पाय सिख ओंधे॥ — तुलसी। गूद = गूदा। हान = हानि।