पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२६८

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पदमावत

८६ कासों कहीं विरह के भाषा ? । जासो कहीं होइ जरि राखा ॥ बिरह आागि तन बन बन जरे । नैन नीर सब सायर भरे ॥ पाती लिखी मुंवरि तुम्ह नावाँ। रकत लिखे नाखर भए सावाँ ॥ भाखर जरहि न काहू ङा । तब दुख देखि चला लेइ सुना अब सु2ि महँ, "छि गड़ (पाती) पेम पियारे हाथ भेंट होत दुख रोइ सूनावत जीउ जात जौ साथ ॥ & ॥ कंचन तार बाँधि गिउ पाती। लेइ गा सुआ जहाँ धनि राती ॥ जैसे कंबल सूर क नासा । नीर कंठ लहि मरत पियासा । बिसरा भोग सेज सुख बासा। जहाँ ार सब तहाँ हुलासा ॥ तौ लगि धीर सुना नहि पीऊ। सुना त घरी रहै नहि जीछ ॥ तौ लगि सुख हिय पेम न जाना। जहाँ पेम कत सुख बिसरामा ? ॥ अगर चंदन सुटि द: सरीरू। श्र भा अगिनि का कर चीरू ॥ कथा कहानी सुनि जिउ जरा। जानलें। घोउ बसंदर परा । बिरह न आायु सभा, मैल चीर, सिर रूख । पिउ पिउ करत राति दिन, जस पपिहा मुख सूख I१०। ततखन गा हीरामन आाई। मरत पियास छाँह जनु पाई भल तुम्ह, सुना ? कोन्ह है फेरा। कह कुसल अब पीतम केरा । बाट न अगम पहारा हिदय मिलान होड़ निनारा जानौ, । मरम पानि कर जान पियासा। जो जल महें ता कहूँ का नासा : । का रानी यह पूछह बाता । जिनि कोइ होइ पेम कर राता ॥ तुम्हरे लागि बियोगी। (महादेव दरसन अहा स मठ जोगी तुम्ह वसंत लेइ तहाँ सिधाई । देव पू िपुर्नि औोहि पहूँ श्राई दिस्टि बान तस मारेह, घायल तेहि । भा व दूसरि बात न बोलेंलेइ पद नाव ११ रोवं रोवं फूटे । सूतहि सूत रुहिर छूट। वे वान जो मुख नैनहि के चली रकत धारा। कंथा भीजि भए रतनारा । सूरुज वृद्धि उठा होझ ताता । श्री मजीठ टेसू बन राता बसंत बनसपतीऔौ राते सब जोगी जती ॥ रातीं । पुमि जो भीजि, भयेउ सव गेरू। औौ राते पंखि । तहें पखेरू ॥ राती सतो अगिनि सब काया। गगन मेष राते तेहि छाया । ईगुर , । मैं तुम्हार नहि रोनें पसीजा। भा पहार जौं भीजा तहाँ चकोर कोकिला, तिन्ह हिय मया पठि नैन रकत भरि आाए, तुम्ह फिरि कीन्ह न दीटिं 1 १२ ॥ सावाँ = श्याम ।() नीर कंठ लहि“पियासा = कंठ तक छछि खाली। १० पानी में रहता है फिर भी प्यासों मरता है। बसंदर वैश्वानरअग्नि बिरह = विरह से । रूख = बिना तेल का। (१२) रतनारा = लाल । नैन रकत भरि नाए = चकोर और पहाड़ी कोकिल की आंखें लाल होती हैं।