जोगी बार आव सो, जेहि भिच्छा कै आस।
जो निरास दिढ़ आसन, कित गौने केहु पास?” ॥ ३ ॥
सुनि बसीठ मन उपनी रीसा। जौ पीसत घुन जाइहि पीसा॥
जोगी अस कहुँ कहै न कोई। सो कहु बात जोग जो होई॥
वह बड़ राज इंद्र कर पाटा। धरती परा सरग को चाटा? ॥
जौं यह बात जाइ तहँ चली। छूटहिं अबहिं हस्ति सिंघली॥
औ जौं छुटहिं बज्र कर गोटा। बिसरिहि भुगुति, होइ सब रोटा॥
जहँ केहु दिस्टि न जाइ पसारी। तहाँ पसारसि हाथ भिखारी॥
आगे देखि पाँव धरू, नाथा। तहाँ न हेरु टुट जहँ माथा॥
वह रानी तेहि जोग है, जाहि राज औ पाटु।
सुंदर जाइहि राजघर, जोगिहि बाँदर काटु॥ ४ ॥
जौं जोगी सत बाँदर काटा। एकै जोग, न दूसरि बाटा॥
और साधना आवै साधे। जोग साधना आपुहि दाधे॥[१]
सरि पहुँचाव जोगि कर साथू। दिस्टि चाहि अगमन होई हाथू॥
तुम्हरे जोर सिंघल के हाथी। हमरे हस्ति गुरू हैं साथी॥
अस्ति नास्ति ओहि करत न बारा। परबत करै पाँव कै छारा॥
जोर गिरे गढ़ जावत भए। जे गढ़ गरब करहिं ते नए॥
अंत क चलना कोइ न चीन्हा। जो आवा सो आपन कीन्हा॥
जोगिहि कोइ न चाहिय, तस न मोहिं रिसि लागि।
जोग तंत ज्यों पानी, काह करै तेहि आगि? ॥ ५ ॥
बसिठन्ह जाइ कही अस बाता। राजा सुनत कोह भा राता॥
ठावहिं ठाँव कुँवर सब भाखे। केइ अब लीन्ह जोग, केइ राखे? ॥
निरासा = आशा या कामना से रहित। (४) धरती परा...चाटा =धरती पर पड़ा हुआ कौन स्वर्ग या आकाश चाटता है? कहावत है — ‘रहे भूईं, औ चाटै बादर'। गोटा = गोला। रोटा = दबकर गूँधे आँटे की बेली रोटी के समान। बाँदर काटु = बंदर काटे, मुहाविरा — अर्थात् जोगी का बुरा हो, जोगी चूल्हे में जायँ। (५) सत = सौ। सरि पहुँचाव = बराबर या ठिकाने पहुँचा देता है। दिस्टि चाहि...हाथू = दृष्टि पहुँचने के पहले ही योगी का हाथ पहुँच जाता है। यह दूती के उस बात के उत्तर में है। "जहँ केहु दिस्टि न जाइ पसारी। तहाँ पसारसि हाथ भिखारी॥" चाहि = अपेक्षा, बनिस्बत। नए = नम्र हुए।
- ↑ एक हस्तलिखित प्रति में इसके आगे ये चौपाइयाँ हैं —
राजा तोर हस्ति कर साईं। मोर जीव यह एक गोसाई॥
करकर है जो पाँव तर बारू। तेहि उठाइ कै करै पहारू॥
राज करत तेहि भीख मँगावै। भीख माँग तेहि राज दिखावै॥
मंदिर ढाहि उठावै नए। गढ़ करि गरब खेह मिलि गए॥