अब अस कहाँ छार सिर मेलौं? छार जो होहुँ फाग तब खेलों॥
कित तप कोन्ह छाँड़ि कै राजू। गएउ अहार न भा सिध काजू॥
पाएउ नहिं होइ जोगी जती। अब सर चढौं जरौं जस, सती॥
आइ जो पीतम फिरि गा, मिला न आइ बसंत।
अब तन होरी घालि कै, जारि करों भसमंत॥६॥
ककनू पंखि जैस सर साजा। तस सर साजि जरा चह राजा॥
सकल देवता आइ तुलाने। दहुँ का होइ देव असथाने॥
विरह अगिति बज़्रागि असूभा। जरै सूर न बुभाए वूभा॥
तेहि के जरत जो उठे बजागी। तीनउँ लोक जरै तेहि लागी॥
अवहि की घरी सो चिनगी छूटै। जरहि पहार पहन सब फूटै॥
देवता सबे भसम होइ जाहीं । छार समेटे पाउब नाहीं॥
धरती सरग होइ सब ताता। है कोई एहि राख बिधाता॥
मुहमद चिनगी पेम कै, सुनि महि गगन डेराइ।
धनि बिरही औ धनि हिया, तहँ अस अगिनि समाइ॥७॥
हनुवँत बीर लंक जेइ जारी ।परवत उहै अहा रखवारी॥
बेठि तहाँ होइ लंका ताका। छठ मास देइ उठि हाँका॥
तेहि क॑ आगि उहोौ पुनि जरा। लंका छाड़ि पलंका परा॥
जाइ तहाँ वै कहा संदेस। पारती औ जहाँ महेसू॥
जोगी आहि बियोगी कोई। तुम्हरे मंडप आागि तेइ बोई॥
जरा लंगूर सु राता उहाँ। निकसि जो भागि भएउँ करमूहाँ॥
तेहि वज्रागि जरै हों लागा। बजरंग जरतहि उठि भागा॥
रावन लंका हौं दही, वह हौं दाहै आव।
गए पहार सब औटि कै, को राख गहि पाव?॥८॥
(६) हता = था, आया था। सर-"चिता। (७) ककनू (फा० ककनुस) एक पक्षी जिसके संबंध में प्रसिद्ध है कि आय पूरी होने पर वह घोंसले में बैठकर गाने लगता है जिससे आग लग जाती है और वह जल जाता है। पहन = पाषाणा, पत्थर। पलंका = पलंग, चारपाई अथवा लंका के भी आगे पलंका नामक कल्पित द्वीप॥