पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२५४

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पदमावत

७२ फर फूलन्ह सब डार ओोढ़ाई । चूंड बाँधि के पंचम गाई बालहि ढोल इंदुभी भेरी माँदर, झाँ चढ़ फेरी सिंगि, संख फ बाजन बायें । बंसी, महुआर सुर सेंग साजे और कहिये जो बाजन भले ' भांति भाँति सब बाजत चले रथयह चढ़ सब रूस सोहाई ने? बसंत मठ ऐंडप सिधाई नवल बसंत, नवल सब बारी। सेंद्र वू क्का होश धमारी खिनहि चलहि, खिन चचरि होई नाच कूद भूला सेब कोई ॥ संदुर खे ह उड़ा , गगन भएउ सब रात रातो सगरिउ धरती, राते विरिछन्ह पात ल एहि विधि खेलति सिंघलरानी। महादेव मढ़ जाइ तुलानी लागे । दिस्टि पाप सब ततछन भागे एइ कविलास इंद्र अछरी । को काँ , परमेसरी कई पदमिनो थाई। कोई कहै ससि नखत तराई कोई फूली फुलवारी । फूल ऐति देखह सब बारी। एक सरूप श्री सुंदरि सारी। जीनत दिया सकल महि बारी ॥ मुरुछि परे जोई मु ख जोहै । जानते मिरिग दियारहि मोहै । कोई परा भौंर होइ, बास लीन्ह जन पाँच काइ पतग भा दीपक, कोइ अधजर तन काँप पदमावति ' देव दुबारा। भीतर फंडप कीन्ह पैसारा देवहि संसे भा जिउ केरा । भागाँ केहि दिसि मंडप घेरा एक जोहार कीन्ह नौ दूजा। तिसरे प्राइ चढ़ाएसि पूजा फल फूलन्ह सब मंडप भरावा। चंदन अगर देव नaवावा लइ संदूर भाग खी। पति देव पुनि पायन्ह परी और सहेली सवं बियाहीं । मो कहें देव ! कतईं बर नाहीं ही निरगुन जेइ कीन्ह न सेवा । गुनि निरनि दाता तुम देवा बर साँ जोग मोहि मेरवह, कलस जाति हीं मानि जेहि दिन हींछा पूजे बेगि चढ़ावह श्रानि हींछि हींछि बिनवा जस बानी। पुनि कर जोरि ठाढ़ि भड़ रानी उतरु को देइ, देव मरि गएड । सबद अक्त मंडप महूँ भएड काटि पवारा जैस परेवा। सोएड ईस, ऑौर को देवा (७) पंचम = पंचम स्वर में । मादर = मर्दलएक प्रकार का मृदंग (८) जाइ तुलानी = जा पहुँची। दियारा -- लुक जो गोले कछारों में दिखाई अथवा गतृष्णा चाँप =चंपा, चंपे की महक भरा नहीं सह सकता। (९) एक.दूजा = दो बार प्रणाम किया। (१०) हींछि= इच्छा करके अक्त = परोक्ष, आाकाश ९।