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(१९) पदमावती-सुआ-भेंट-खंड

तेहि बियोग हीरामन आवा। पदमावति जानहुँ जिउ पावा॥
कंठ लाइ सूआ सौं रोई। अधिक मोह जौं मिलै बिछोई॥
आगि उठे दुख हिये गँभीरू। नैनहिं आइ चुवा होइ नीरू॥
रही रोइ जब पदमिनि रानी। हँसि पूछहिं सब सखी सयानी॥
मिले रहस भा चाहिय दूना। कित रोइय जौं मिल बिछूना?॥
तेहि क उतर पदमावति कहा। बिछुरन दुख जो हिये भरि रहा॥
मिलत हिये आएउ सुख भरा। वह दुःख नैन नीर होइ ढरा॥

बिछुरंता जब भेंट, सो जाने जेहि नेह।
सुक्ख सुहेला उग्गवै, दुःख भरै जिमि मेह॥१॥

पुनि रानी हँसि कूसल पूछा। कित गवनेहु पींजर कै छूँछा॥
रानी! तुम्ह जुग जुग सुख पाटू। छाज न पंखिहि पींजर ठाटू॥
जब भा पंख कहाँ थिर रहना। चाहै उड़ा पंखि जा डहना॥
पींजर महँ जो परेवा घेरा। आइ मजारि कीन्ह तहँ फेरा॥
दिन एक आइ हाथ पै मेला। तेहि डर वनोबास कहूँ खेला।
तहाँ वियाध आइ नर साधा। छूटि न पाव मीचु कर बाँधा॥
वे धरि देचा बाम्हन हाथा। जंबू दीप गएउ तेहि साथा॥

तहाँ चित्र चितउरगढ़ चित्रसेन कर राज।
टीका दीन्ह पुत्न कहूँ, आपु लीन्ह सर साज॥२॥

बैठ जो राजा पिता के ठाऊँ। राजा रतनसेन ओहि नाऊँ॥
बरनतु काह देस मनियारा। जहँ अस नग उपना उजियारा॥
धनि माता औं पिता बखाना। जेहिके बंस अंस अस आना॥
लछन बतीसौ कुल निरमला। बरनि न जाइ रूप औ कला॥
वैहौं लीन्‍न्ह, अहा अस भागू। चाहै सोने मिला सोहागू॥
वैसो नग देखि हींछा भह मोरी। है यह रतन पदारथ जोरी॥


 

(१) बिछोई = बिछुड़ा हुआ। रहस = आनंद। बिछूना = बिछुड़ा हुआ। सुहेला = सुहैल या अगस्त तारा। भरँ = छँट जाता है, दूर हो जाता है। मेह = मेघ, बादल। (२) छाज न = नहीं अच्छा लगता। पींजर ठाटू = पिजरे का ढांचा। दिन एक मेला = किसी दिन अवश्य हाथ डालेगी। नर = नरसल, जिसमें लासा लगाकर बहेलिए चिड़िया फँसाते हैं। चित्र = विचित्र। सर साज लीन्ह = चिता पर चढ़ा; मर गया। (३) मनियारा = रौनक, सोहावना। अंस = अवतार।