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पदमावत

सब निवहै तहँ आपनि साँठी। साँठि बिना सो रह मुख माँटी॥
राजा चला साजि कै जोगू। साजहु बेगि चलहु सब लोगू॥
गरब जो चढ़े तुरय कै पीठी। अब भुइँ चलहु सरग कै डीठी॥
मंतर लेहु होहु सँग लाग। गुदर जाइ सब होइहि आगू।॥

का निचिंत रे मानस, आपन चीते आछु।
लेहि सजग होइ अगमन, मन पछिताव न पाछु॥३॥

विनवै रत्नसेन कै माया। माथे छात, पाट निति पाया॥
विलसहु नौ लख लच्छि पियारी। राज छाँड़ि जिनि होहु भिखारी॥
निति चंदन लागै जेहि देहा। सो तन देख भरत अब खेहा॥
सब दिन रहेहु करत तुम भोगू। सो कैसे साधव तप जोगू॥
कैसे धूप सइव बिनु छाहाँ। कैसे नींद परिहि भुइ माहाँ?
कैसे ओढ़ब काथरि कंथा। कंसे पावँ चलब तुम पंथा?॥
कैसे सहब खिनहि खिन भूखा। कैसे खाब कुरकुटा रूखा॥

राजपाट, दर, परिगह तुम्ह ही सौं उजियार।
बेठि भोग रस मानहु, कै न चलहु अँधियार॥४॥

मोहि यह लोभ सुनाव न माया। काकर सुख काकर यह काया॥
जो निआन तम होइहि छारा। माटिहिं पोखि मरै को भारा?
का भूलाैं एहि चंदन चोवा। बैरी जहाँ अंग कर रोवाँ॥
हाथ, पाँव, सरवन औं आँखी। ए सब उहाँ भरहि मिलि साखी॥
सूत सूत तन बोलहिं दोखू। कहु कैसे होइहि गति मोखू॥
जौं भल होत राज और भोगू। गोपिचंद नहिं साधत जोंगू॥
उन्ह हिय दीठि जो देख परेवा। तजा राज कजरी वन सेवा॥

देखि अंत अस होइहि गुरू दीन्‍ह उपदेस।
सिंघलदीप जाब हम, माता! देहु अदेस॥५॥

रोवहिं नागमती रनिवासू। केइ तुम्ह कंत दीन्ह बनवासू॥
अब को हमहिं करिहि भोगिनी। हमहूँ साथ होब जोगिनी॥
की हम्ह लाबहु अपने साथा। की अब मारि चलह एहि हाथा॥
तुम्ह अस बिछुरै पीउ पीरीता। जहँवाँ राम तहाँ सँग सीता॥
जौ लहि जिउ सँग छाड़ न काया। करिहौं सेव, पखरिहौं पाया॥
भलेहि पदमिनी रूप अनूपा। हमतें कोइ आगरि रूपा॥


होइहि = पेश होइए। हाजिर होइए आपनि चीते आछ = अपने चेत या होश में रह। अगमन = भागे, पहले से। (४) माया माता। लच्छि = लक्ष्मी। कंथा = गुदड़ी। कुरकुटा = मोटा कुटा अ्रन्न। दर = दल या राजद्वार। परिगह = परिग्रह, परिजन, परिवार के लोग। (५) निआन निदान, अंत में। पोखि = पोषण करके। साखी भरहिं = साक्ष्य या गवाही देते हैं। देख परेवा = पक्षी की सी अपनी दशा देखी। कजरीबन = कजलीवन।