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पदमावत

कनक पाट जनु बैठा राजा। सबै सिँगार अन्न लेइ साजा॥
ओहि आगे थिर रहा न कोऊ। दहुँ का कहँ अस जुरै सँजोऊ॥

खरग, धनुक, चक बान दुउ, जग मारन तिन्ह नावँ।
सुनि कै परा मुरुछि कै (राजा) मोकहँ हए कुठावँ॥३॥

भौंहें स्याम धनुक जनु ताना। जासहुँ हेर मार विष बाना॥
हनै धुनै उन्ह भौंहरि चढ़े। केइ हतियार काल अस गढ़े?
उहै धनुक किरसुन पर अहा। उहै धनुक राघौ कर गहा॥
ओहि भ्रमुक रावन संघारा। ओहि धनुक कंसासुर मारा॥
ओहि धनुक बेधा हुत राहु। मारा ओहि सहस्राबाहू॥
उहै धनुक मैं तापहँ चीन्हा। धानुक आप बेझ जग कीन्हा॥
उन्ह भौंहनि सरि केउ न जीता। अछरी छपीं, छपीं गोपीता॥

भौंह धनुक, धनि धानुक, दूसर सरि न कराई।
गगन धनुक जो ऊगै, लाजहि सो छपि जाइ॥४॥

नैन बाँक, सरि पूछ न कोऊ। मानसरोदक उलथहिं दोऊ॥
राते कँवल कारहिं अलि भवाँ। धूमहिं माति चहहिं अपसवाँ॥
उठहि तुरंग लेहिं नहिं बागा। चाहहिं उलथि गगन कहँ लागा॥
पवन झकोरहिं देइ हिलोरा। सरग लाल भुइँ लाल बहोरा॥
जग डोलै डोलन नैनाहाँ। उलटि अड़ार जाहिं पल माहाँ॥
जबहिं फिराहिं गगन गति बोरा। अस वै धौंर चक्र के जोरा॥
समुद हिलोर फिरहिं जनु झूले। खंजन लरहिं, मिरिग जनु भूले॥

सुभर सरोवर नयन वै, मानिक ररे तरंग।
आवत तीर फिरावहीं, काल भौंर तेहिं संग॥१॥

बरुनी का बरनौं इमि बनी। साधे बान जानु दुइ अनी॥
जुरी राम रावन कै सैना। बीच समुद्र भए दुइ नैना॥
बारहिं पार बदावरि साधा। जा सहुँ हेर लाग विष बाधा॥
उन्ह बानन्ह अस को जो न मारा। बेधि रहा सगरौ संसारा॥
गगन नखत जो जाहि न गने। वै सब बान ओही के हने॥
धरती बान बेधि सब राखी। साखी ठाढ़ देहिं सब साखी॥
रोवँ रोवँ मानुष तन ठाढ़े। सूतहि सूत बेध अस गाढ़े॥


सोहाग = (क) सौभाग्य, (ख) सोहागा। (३) ओती = उतनी। अब = अस्त्र हए = हने, मारा। (४) सहूँ = सामने। हुत = था। बेझ = बेध्य, बेझा, निसाना। (५) उलथहिं = उछलते हैं। भवाँ = फेरा, चक्कर। अपसवाँ चहहिं = जाना चाहते हैं, उड़कर भागना चाहते हैं (अपस्रवण)। (६) उलचि.... पल साहा = बड़े बड़े अड़नेवाले या स्थिर रहने वाले पल भर में उलट जाते हैं।