रूपवंत धनवंत सभागे। परस पखान पौरि तिन्ह लागे॥
भोग-विलास सदा सब माना। दुख चिंता कोइ जनम न जाना॥
मँदिर मँदिर सब के चौपारी। बैठि कुँवर सब खेलहि सारी॥
पासा ढरहिं खेल भल होई। खड़गदान सरि पूज न कोई॥
भाँट बरनि कहि कीरति भली। पावहिं हस्ति घोड़ सिंघली॥
मँदिर मँदिर फुलवारी, चोवा चंदन बास।
निसि दिन रहै वसंत तहँ छवौ ऋतु बारह मास॥२०॥
पुनि चलि देखा राज दुआरा। मानुष फिरहिं पाइ नहिं बारा।
हस्ति सिंघली बाँधे धारा। जनु सजीव सब ठाढ़ पहारा॥
कौनौ सेत पीत रतनारे। कौनौ हरे, धूम औ कारे॥
बरनहिं बरन गगन जस मेघा। औ तिन्ह गगन पीठि जनु ठेघा॥
सिंघल के बरनौं सिंघली। एक एक चाहि एक एक बली॥
गिरि पहार वै पैगहि पेलहिं। बिरिछ उचारि डारि मुख मेलहिं॥
माते तेइ सब गरजहिं बाँधे। निसि दिन रहहिं महाउत काँधे॥
धरती भार न अँगवै, पाँव धरत उठ हालि।
कुरुम टुटै, भुइँ फाटै तिन हस्तिन्ह के चालि॥२१॥
पुनि बाँधे रजवार तुरंगा। का बरनौं जस उन्हकै रंगा॥
लील, समंद चाल जग जाने । हाँसुल, भौंर गियाह बखाने॥
हरे, कुरंग, महुअ बहु भाँती। गरर, कोकाह, बुलाह सु पाँती॥
तीख तुखार चाँड़ औ बाँके। सँचरहिं पौरि ताज बिनु हाँके॥
मन तें अगमन डोलहिं बागा। लेत उसास गगन सिर लागा॥
पौन समान समुद पर धावहिं। बूड़ न पाँव, पार होइ आवहिं।
थिर न रहहिं, रिस लोह चबाहीं। भाँजहि पूँछ, सीस उपराहीं॥
अस तुखार सब देखे जनु मन के रथवाह।
नैन पलक पहुँचावहिं जहँ पहुँचा कोइ चाह॥२२॥
जब पानी भर जाने से घड़िया डूब जाती थी तब एक घड़ी का बीतनामाना जाता था। (२०) परस पखान = स्पर्शमरिण, पारस पत्थर। सारी = पासा। झारि = बिल्कुल या समूह। सरि पूज= बराबरी को पहुँचता है। खड़गदान = तलवार चलाना। (२१) बारा = द्वार। ठेवा = सहारा दिया। रजवार = राजद्वार। समंद = बादामी रंग का घोड़ा। हाँसुल = कुम्मैत हिनाई, मेहँदी के रंग का और पैर कुछ काले। भौंर = मुश्की। कियाह = ताड़ के पके फल का रंग। हरे = सब्जा। कुरंग = लाख के रंग का या नीला कुम्मैत। महुअ = महुए के रंग का। कुरंग = लाल और सफेद मिले रोएँ का, गर्रा। कोकाह = सफेद रंग का। बुलाह = बोल्लाह, गर्दन और पूंछ के बाल पीले। पताजा = ताजियाना, चाबुक। अगमन = आगे। तुखार = तुषार देश के घोड़े, यहाँ घोड़े।
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