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पदमावत

फरे तूत कमरख औ न्यौजी। रायकरौंदा वेर चिरौंजी॥
संगतरा व छुहारा दीठे। और खजहजा खाटे मीठे॥

पानि देहिं खँड़बानी कुबहिं खाँड़ बहु मेलि।
लागी घरी रहट कै सोचहिं अमृतबेलि॥१०॥

पुनि फुलवारि लागि चहुँ पासा। बिरिछ बेधि चंदन भइ बासा॥
बहुत फूल फूली घनबेली। केवड़ा चंपा कुंद चमेली॥
सुरंग गुलाल कदम औ कूजा। सुगँध बकौरी गंध्रव पूजा॥
जाही जूही बगुचन लावा। पुहुप सुदरसन लाग सुहावा॥
नागेसर सदबरग नेवारीं। औ सिंगारहार फूलवारीं॥
सोनजरद फूलीं सेवती। रूपमंजरी और मालती॥
मौलसिरी बेइलि औ करना। सवै फूल फूले बहुबरना॥

तेहिं सिर फूल चढ़हिं वै जेहि माथे मनि भाग।
आछहिं सदा सुगंध बहु जनु बसंत औ फाग॥११॥

सिंघलनगर देखु पुनि बसा। धनि राजा अस जे कै दसा॥
ऊँची पौरी उँच अवासा। जनु कैलास इंद्र कर बासा॥
राव रंक सब घर घर सुखी। जो दीखै सो हँसता मुखी॥
रचि रचि साजे चंदन चौरा। पोतें अगर भेद औ गोरा॥
सब चौपारहिं चंदन खंभा। ओठँघि सभापति बैठे सभा॥
मनहुँ सभा देवतन्ह कर जुरी। परी दीठि इंद्रासन पुरी॥
सबै गुनी औ पंडित ज्ञाता। संसकिरित सबके मुख बाता॥

अस कै मँदिर सँवारे, जनु सिवलोक अनूप।
घर घर नारि पदमिनी, मोहहिं, दरसन रूप॥१२॥

पुनि देखी सिंघल कै हाटा। नवौ निद्धि लछिमी सब बाटा॥
कनक हाट सब कुहकुहँ लीपी। बैठ महाजन सिंघलदीपी॥
रचहिं हथौड़ा रूपन ढारी। चित्र कटाव अनेक सँवारी॥
सोन रूप भल भयउ पसारा। धवल सिरी पोतहिं घर बारा॥
रतन पदारथ मानिक मोती। हीरा लाल सो अनबन जोती॥
औ कपूर बेना कस्तूरी। चंदन अगर रहा भरपूरी॥
जिन्ह एहि हाट न लीन्ह बेसाहा। ता कहँ आन हाट कित लाहा॥


मरजीया = जान जोखिम में डालकर विकट स्थानों से व्यापार की वस्तुएँ लानेवाले, जीवकिया, जैसे, गोताखोर। (१०) हरफार्‌योरी = लवली। न्योजी = लीची। खँडवानी = खाँड़ का रस। (११) कूजा = कुब्जक। पहाड़ी या जंगली गुलाब जिसके फल सफेद होते हैं। घनबेली = बेला की एक जाति। नागेसर = नागकेसर। बकौरी = बकावली। बगुचा = (गट्ठा) ढेर, राशि। सिंगारहार = हरिसिगार। शेफालिका।

(१२) मेद = मेदा, एक सुगंधित जड़। गौरा = गोरोचन। ओठँघि =