फरे आँव अति सघन सोहाए। औ जस फरे अधिक सिर नाए॥
कटहर डार पींड सन पाके। बड़हर, सो अनूप अति ताके॥
खिरनी पाकि खाँड़ अस मीठी। जामुन पाकि भँवर अति डीठी॥
नरियर फरे फरी फरहरी। फुरै जानु इंद्रासन पुरी॥
पुनि महुआ चुआ अधिक मिठासू। मधु जस मीठ पुहुप जस बासू॥
और खजहजा अनबन नाऊ। देखी सब राउन अमराऊ॥
लाग सबै जस अमृत साखा। रहै लोभाइ सोइ जो चाखा॥
लवँग सुपारी जायफल सब फर फरे अपूर।
आसपास घन इमिली औ घन तार खजूर॥४॥
बसहिं पंखि बोलहिं बहु भाखा। करहिं हुलास देखि कै साखा॥
भोर होत बोलहिं चुहचुही। बोलहिं पाँडुक 'एकै तूही'॥
सारौं सुआ जो रहचह करहीं। कुरहि परेवा औ करबरहीं॥
'पीव पीव' कर लाग पपीहा। 'तुही तुही' कर गडुरी जीहा॥
'कुहू कुहू' करि कोइल राखा। औ भिंगराज बोल बहु भाखा॥
'दही दही' करि महरि पुकारा। हारिल बनवै आपन हारा॥
कुहुकहिं मोर सोहावन लागा। होइ कुराहर बोलहिं कागा॥
जावत पंखी जगत के भरि बैठे अमराऊँ।
आपनि आपनि भाषा लेहिं दई कर नाउँ॥५॥
पैग पैग पर कुआँ बाबरी। साजी बैठक और पाँवरी॥
और कुंड बहु ठावहिं ठाऊँ। औ सब तीरथ तिन्ह के नाऊँ॥
मठ मंडप चहँ पास सँवारे। तपा जपा सब आसन मारे॥
कोइ सु ऋषीसुर, कोइ सन्यासी। कोई रामजती बिसवासी॥
कोई ब्रह्मचार पथ लागे। कोइ सो दिगबर बिचरहिं नाँगे॥
कोई सु महेसुर जंगम जती। कोइ एक परखै देवी सती॥
कोइ सुरसती कोई जोगी। कोइ निरास पथ बैठ वियोगी॥
सेवरा, खेवरा, बानपर, सिध, साधक, अवधूत।
आसन मारे बैठ सब जारि आतमा भूत॥६॥
मानसरोदक बरनौं काहा। भरा समद अस अति अवगाहा॥
पानि मोति अस निरमल तासू। अमृत आनि कपूर सुबासू॥
लंकदीप कै सिला अनाई। बाँधा सरवर घाट बनाई॥
खंड खंड सीढ़ी भई गरेरी। उतरह चढ़हि लोग चहुँ फेरी॥
(४) पींड = जड़ के पास की पेडी। फुरै = सचमुच। खजहजा = खाने के फल। अनबन = भिन्न भिन्न। (५) चुहचुही = एक छोटी चिड़िया जिसे फूलसुँघनी भी कहते हैं। सारौं = सारिका, मैना। महरि = महोख से मिलती-जुलती एक छोटी चिड़िया जिसे ग्वालिन और अहीरिन भी कहते हैं। हारा = हाल, अथवा लाचारी, दीनता। (६) पैग पैग पर = कदम कदम पर।