हिंदी में चरित्नकाव्य बहुत थोड़े हैं। ब्रजभाषा में तो कोई ऐसा चरितकाव्य नहीं जिसने जनता के बीच प्रसिद्धि प्राप्त की हो। पुरानी हिदी के पृथ्वीराजरासो, बीसलदेवरासो, हम्मीररासो आादि वीरगाथाओं के पीछे चरितकाव्य की परंपरा हमें अवधी भाषा में ही मिलती है। ब्रजभाषा में केवल ब्रजवासीदास के ब्रजविलास का कुछ प्रचार कृष्णभक्तों में हुआ, शेष रामरसायन आदि जो दो एक प्रबंधकाव्य लिखे गए वे जनता को कुछ भी आकर्षित न कर सके। केशव की रामचंद्रिका का काव्यप्रेमियों में आादर रहा पर उसमें प्रबंधकाव्य के वे गुण नहीं हैं जो होने चाहिए। चरितकाव्य में अवधी भाषा को ही सफलता हुई और अवधी भाषा के सर्वश्रेष्ठ रत्न हैं ‘रामचरितमानस’ और ‘पद्मावत'। इस दष्टि से हिंदी साहित्य में हम जायसी के उच्च स्थान का अनुमान कर सकते हैं।
बिना किसी निर्दिष्ट विवेचनपद्धति के यों ही कवियों की श्रेणी बाँधना और एक कवि को दूसरे कवि से छोटा या बड़ा कहना हम एक बहुत भोंड़ी बात समझते हैं। जायसी के स्थान का निश्चय करने के लिये हमें चाहिए कि हम पहले अलग अलग क्षेत्र निश्चित कर लें। सुबीते के लिये यहाँ हम हिंदी काव्य के दो ही क्षेत्र विभाग करके चलते हैं प्रबंध क्षेत्र और मुक्तक क्षेत्र। इन दोनों क्षेत्रों के भीतर भी कई उपविभाग हो सकते हैं। यहाँ मुक्तक क्षेत्र से कोई प्रयोजन नहीं जिसके अंतर्गत केशव, बिहारी, भूषण, देव, पद्माकर आादि कवि आते हैं। प्रबंध क्षेत्र के भीतर हम कह चुके हैं, दो काव्य सर्वश्रेष्ठ हैं― ‘रामचरितमानस’ और ‘पद्मावत’। दोनों में ‘रामचरितमानस’ का पद ऊँचा है यह हम स्थान स्थान पर दिखाते भी आए हैं और सबको स्वीकृत भी होगा। अतः समग्र प्रबंधक्षेत्र के विचार से हम कह सकते हैं कि प्रबंधक्षेत्र में जायसी का स्थान तुलसी से दूसरा है। यदि हम प्रबंधक्षेत्र के भीतर और तीन विभाग करते हैं― वीरगाथा, प्रेमगाथा और जीवनगाथा― और इस व्यवस्था के अनुसार रासो आदि को वीरगाथा के अंतर्गत मृगावती, पद्मावती आादि को प्रेमगाथा के अंतर्गत तथा रामचरितमानस को जीवनगाथा के अतर्गत रखते हैं तो प्रेमगाथा की परंपरा के भीतर (जिसमें कुतवन, उसमान, नूरमुहम्मद आदि हैं) जायसी का नबर सबसे ऊँचा ठहरता है। मृगावतो, इंद्रावती, चित्रावली आदि को बहुत कम लोग जानते हैं, पर ‘पद्मावती’ हिंदी साहित्य का एक जगमगाता रत्न है।
यदि कोई इसके विचार का आग्रह प्रबंध और मुक्तक इन दो क्षेत्रों में कौन क्षेत्र अधिक महत्व का है, किस क्षेत्र में कवि की सहृदयता और भावुकात की पूरी परख हो सकती है, तो हम बार बार वही बात कहेंगे जो गोस्वामीजी की आलोचना में कह आए हैं अर्थात् प्रबंध के भीतर आई हुई मानव जीवन की भिन्न भिन्न दशाओं के साथ जो अपने हृदय का पूर्ण सायंजस्य दिखा सके वही पूरा और सच्चा कवि है। प्रबंधक्षेत्र में तुलसीदास जी का जो र्स्वोच्च आसन है, उसका कारण यह है कि वीरता, प्रेम आदि जीवन का कोई एक ही पक्ष न लेकर उन्होंने संपूर्ण जीवन को लिया है और उसके भीतर आनेवाली अनेक दशाओं के प्रति अपनी गहरी अनुभूति का परिचय दिया है। जायसी का क्षेत्र तुलसी की अपेक्षा परिमित है पर प्रेमवेदना उनकी अत्यंत गूढ़ है।