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साधारण क्रिया (इनफिनिटिव) के रूप अवधी में लध्वंत वकारांत होते ही हैं, जैसे—आउब, जाब, करब, खाब, इत्यादि। पच्छिमी हिंदी के कुछ दीर्घांत शब्द भी अवधी में कहीं कहीं लध्वंत होते हैं, जैसे—
बहल घोड़ हस्ती सिंहनी
खड़ी बोली के समान अवधी में भी भूतकालिक कृदंत होते हैं। बहुत से अकर्मक कृदंत विकल्प से लध्वंत भी होते हैं जैसे, ठाढ़, बैठ, आय गय इत्यादि। नीचे कुछ उदाहरण दिए जाते हैं—
(१) बैठ महाजन सिंहलद्वीपी (बैठ=बैठ हैं= बैठे हैं)
(२) रहा न जोबन आय बुढ़ापा (आव=आया)
(३) कटक सरह अस छूट (छूट=छूटा)
सकर्मक में करना, देना और लेना इन तीन क्रियाओं के भी विकल्प से क्रमशः 'कीन्ह', 'दीन्ह', और 'लीन्ह' रूप होते हैं। इसी प्रकार पद्य में कभी कभी वर्तमान काल के रूप के स्थान पर संक्षेप के लिये धातु का रूप रख दिया जाता है जैसे—
(क) हौं अंधा जेहि सूझ न पीठी। (सूझ=सुझती है)
(ख) बिनु गथ विरिछ निपात जिमि ठाढ़ ठाढ़ पै सुख। (सूख सूखता है)
संभाव्य भविष्यत् का रूप साधारणतः तो वर्तमान ही के समान पुरुषभेद लिए हुए होता है पर ठेठ पूरबी अवधी में प्रायः प्रथम पुरुष में भी मध्यम पुरुष बहुवचन का रूप ही रहता है, जैसे—
(क ) जोवन जाउ, जाउ सो भँवरा।
(जाउ=जाय, चाहे चला जाय)
(ख) सब लिखनी कै लिखु संसारा।
(लिखु=यदि लिखे)
(ग) अजस होउ, जस सुजस नसाउ।
(होउ=चाहे हो। नसाउ=चाहे नसाय)
तुलसी और जायसी के लिंगनिर्णय में ऊपर लिखी बातों का ध्यान रखना चाहिए। चौपाई में चरण के अंत का पद यदि लध्वंत हो तो भी दीर्घांत कर दिया जाता है, यह तो प्रसिद्ध ही है। अतः चरण के अंत में आए हुए किसी पद के लिंग का निर्णय करते समय यह विचार लेना चाहिए कि वह छंद की दृष्टि से लध्वंत से दीर्घांत तो नहीं किया गया है। तुलसी और जायसी के कुछ उदाहरण लीजिए—
(क) मरम वचन जब सीता बोला—तुलसी।
(ख) देखि चरित पदमावति हँसा—जायसी