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पूरबी हिंदी में जबतक कोई कारकचिह्न नहीं लगता तबतक संज्ञाओं के बहुवचन का रूप वही रहता है जो एकवचन का। पर जायसी ने पछाँही हिंदी के बहुवचन रूप कहीं कहीं रखे हैं, जैसे—
(क) नसै भई सब ताँति।
(ख) जोबन लाग हिलोरै लेई॥
जायसी 'तू' या 'तैं' के स्थान पर अकसर 'तुइँ' का प्रयोग करते हैं। यह कनौजी और पच्छिमी अवधी का रूप है जो खीरी, शाहजहाँपुर से लेकर कन्नौज तक बोला जाता है।
खड़ी बोली और ब्रजभाषा दोनों पछाहीं बोलियों की प्रवृत्ति दीर्घांत पदों की ओर है, पर अवधी की लध्वंत प्रवृत्ति है। खड़ी बोली और ब्रजभाषा में जो विशेषण और संबंधकारक के सर्वनाम आकारांत और प्रकारांत मिलते हैं वे अवधी में प्रकारांत पाए जाते हैं। नीचे ऐसे कुछ शब्द दिए जाते हैं—
खड़ी बोली | ब्रजभाषा | अवधी |
ऐसा | ऐसो | ऐस या अस |
जैसा | जैसो | जैस या जस |
तैसा | तैसो | तैस या तस |
कैसा | कैसो | कैस या कस |
छोटा | छोटो | छोट |
बड़ा | बड़ो | बड़ |
खोटा | खोटो | खोट |
खरा | खरो | खर |
भला | भलो नीको |
भल नीक |
थोड़ा | थोरो | थोर |
गहिरा | गहिरो | गहिर |
पतला | पतरो, पातरो | पातर |
पिछला | पाछिलो | पाछिल |
चकला | चकरो | चाकर |
दूना | दूनो | दून |
साँवला | साँवरो | साँवर |
गोरा | गोरो | गोर |
प्यारा | प्यारो | पियार |
ऊँचा | ऊँचो | ऊँच |
नीचा | नीचो | नीच |
अपना | अपनो | आपन |
मेरा | मेरो | मोर |
तेरा | तेरो | तोर |
हमारा | हमारो | हमार |