के पहले की हैं, अतः इनका उल्लेख ग्रंथ में इतिहास की दृष्टि से अत्यंत उचित हुआ है।
अलाउद्दीन के समय की और घटनाओं का भी जायसी को पूरा पता था। मंगोलों के देश का नाम उन्होंने 'हरेव' लिखा है। अलाउद्दीन के समय में मंगलों के कई आक्रमण हुए थे जिनमें सबसे जबरदस्त हमला सन् १३०३ ई° में हुआ था। सन् १३०३ में ही चित्तौर पर अलाउद्दीन ने चढ़ाई की। अब देखिए मंगोलों की इस चढ़ाई का उल्लेख जायसी ने किस प्रकार से किया है। अलाउद्दीन चित्तौर गढ़ को घेरे हुए हैं, इसी बीच में दिल्ली से चिट्ठी आती है—
एहि विधि ढील दीन्ह तब ताईं! दिल्ली तें अरदासें आईं॥
पछिउँ हरेव दीन्हि जो पीठी। सो अब चढ़ा सौंह के दीठी॥
जिन्ह भुइँ माथ गगन तेहि लागा। थाने उठे आव सब भागा॥
उहाँ साह चितउर गढ़ छावा। इहाँ देश अब होइ परावा॥
ज्योतिष का परिज्ञान जायसी को अच्छा प्रतीत होता है। रत्नसेन के सिंहलद्वीप से प्रस्थान करने के पहले उन्होंने जो यात्राविचार लिखा है वह बहुत विस्तृत भी है और ग्रंथों के अनुकूल भी। इस प्रसंग की उनकी बहुत सी चौपाइयाँ तो सर्व-साधारण की जबान पर हैं, जैसे—
सोम सनीचर पुरुब न चालू। मंगर बुद्ध उतर दिसि कालू॥
पिंड और ब्रह्मांड की एकता का प्रतिपादन करते हुए अखरावट में जायसी ने शरीर में ही जो ग्रहों की नीचे ऊपर स्थिति लिखी है वह सूर्य-सिद्धांत आदि ज्योतिष ग्रंथों के ठीक अनुकूल है। अरबी, फारसी नामों के साथ भारतीय नामों के तारतम्य का भी ज्ञान कवि को पूरा पूरा था, जो एक कठिन बात है। 'सुहैल' तारे का 'सोहिल' के नाम से पदमावत में उन्होंने कई जगह उल्लेख किया है। यह 'सुहैल' अरबी शब्द है। फारसी और उर्दू की शायरी में इस तारे का नाम बराबर आता है पर शोभावर्णन की दृष्टि से प्रायः हिलाल के साथ। यह तारा भारतीयों का 'अगस्त्य' तारा है, इस बात का पता जायसी को था। अतः उन्होंने इसका वर्णन उस रूप में भी किया है जिस रूप में भारतीय कवि किया करते हैं। भारतीय कवि इसका वर्णन वर्षा का अंत और शरत् का आगमन सूचित करने के लिये किया करते हैं, जैसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है—
उदित अगस्त पंथ जल सोषा। जिमि लोभहिं सोखै संतोषा॥
जायसी ने ठीक इसी प्रकार का वर्णन 'सुहेल' का किया है—
बिछरंता जब भेंटै, सो जानै जेहि नेह।
सुक्ख सुहेला उग्गवै, दुःख झरै जिमि मेह॥
ऐसा ही एक स्थल पर और है। राजा रत्नसेन को दिल्ली से छुड़ाकर जब गोरा बादल लेकर चले हैं तब बादशाही सेना ने उनका पीछा किया है। उस समय गोरा के कहने से बादल तो रत्नसेन को लेकर चित्तौर की ओर जाता है और वृद्ध गोरा मुसलमान सेना की ओर लौटकर इस प्रकार ललकारता है—