(ख) ज्यों रहीम गति दीप की, कुल कुपूत की सोइ।
बारे उजियारो लगै, बढ़े अँधेरो होइ॥
ऐसे कथनों में आकर्षित करनेवाली वस्तु होती है वर्णन के ढंग का चमत्कार। इस प्रकार का चमत्कार चित्त को आकर्षित करता है पर उसी रूप में जिस रूप में कोई तमाशा आकर्षित करता हैं। इस प्रकार के आकर्षण में ही काव्यत्व नहीं है। मन को इस प्रकार से ऊपर ही ऊपर आकर्षित करना केवल कुतूहल उत्पन्न करना, काव्य का लक्ष्य नहीं है। उसका लक्ष्य है मन को भिन्न भिन्न भावों में (केवल आश्चर्य में ही नहीं, जैसा चमत्कारवादी कहा करते हैं) लीन करना। कुछ वैलक्षण्य द्वारा आकर्षण साधन हो सकता है साध्य नहीं। जो लोग कथन की चतुराई या अनूठेपन को ही काव्य समझा करते हैं उन्हें अग्निपुराण के इस वचन पर ध्यान देना चाहिए—
वाग्वैदग्ध्यप्रधानेऽपि रस एवात्र जीवितम्।
भावव्यंजना, वस्तुवर्णन और तथ्यप्रकाश सबके अंतर्गत चमत्कारपूर्ण कथन हो सकता है। ऊपर जो दोहे दिए गए हैं वे तथ्यप्रकाश के उदाहरण हैं। भाव-व्यंजना के अंतर्गत जायसी की चमत्कारयोजना के कुछ उदाहरण आ चुके हैं, जैसे—
यह तन जारौं छार कै, कहौं कि 'पवन! उड़ाव'।
मकु तेहि मारग उड़ि परै, कंत धरे जहँ पाव॥
वस्तुचित्रण के बीच भी जायसी में उक्तिवैचित्य स्थान स्थान पर है, जैसे—
चकई बिछुरि पुकारै, कहाँ मिलौं, हो नाइ।
एक चाँद निसि सरग महँ; दिन दूसर जल माँह॥
भावव्यंजना, वस्तुवर्णन और तथ्यप्रकाश तीनों में यह बात है कि यदि चमत्कार के साथ ही किसी भाव की अनुभूति में उपयोगी सामग्री भी है तब तो उक्ति प्रकृत काव्य कही जा सकती है नहीं तो काव्याभास होगी। जायसी के दोनों दोहों को लेकर देखते हैं तो प्रथम में जो चमत्कार है वह अभिलाष के उत्कर्ष की व्यंजना में सहायक है और द्वितीय में जो चमत्कार है वह आलंबन के सौंदर्य की अनुभूति में।
यहाँ पर चमत्कारपद्धति और रसपद्धति में जो भेद है उसे स्पष्ट करने का थोड़ा प्रयत्न करना चाहिए। किसी वस्तु के वर्णन या किसी तथ्य के कथन में बुद्धि को दौड़ाकर यदि ऐसी वस्तु या प्रसंग की योजना की जाय जिसकी ओर प्रस्तुत वस्तु या प्रसंग के संबंध में श्रोता का ध्यान पहले कभी न गया हो और जो इस कारण बिलकुल नया या विलक्षण लगे तो एक प्रकार का कुतूहल उत्पन्न होगा। यही कुतूहल उत्पन्न करना चमत्कार का उद्देश्य है। रससंचार के निमित्त जो कथन किया जाता है उसमें भी कभी कभी साधारण से कुछ और ढंग पकड़ना पड़ता है (क्या ढंग पकड़ना पड़ता है, इसपर और कभी विचार किया जायगा) पर उसमें यह उद्देश्य मुख्य नहीं होता कि जिस वस्तु या प्रसंग की योजना की जाय वह श्रोता को नया, विलक्षण या अनूठा लगे बल्कि अपने मर्मस्पर्शी स्वरूप के कारण भाव की गहरी व्यंजना करे या श्रोता के हृदय में वासनारूप में स्थित किसी भाव को जाग्रत करे। इस प्रकार विचार करने से कवि की उक्ति तीन प्रकार की हो सकती है—(१) जिसमें केवल चमत्कार या वैलक्षण्य हो, (२) जिसमें केवल रस या भावुकता हो, (३) जिसमें रस और चमत्कार दोनों हो।