पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/१४३

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हुई और वही काव्य क्षेत्र में जाकर भड़कीली और अस्फुट भावनाओं तथा चित्रों के विधान के रूप में प्रकट हुई।[]

अद्वैतवाद मूल में एक दार्शनिक सिद्धांत है, कविकल्पना या भावना नहीं। वह मनुष्य के बुद्धिप्रयास या तत्वचिंतन का फल है। वह ज्ञानक्षेत्र की वस्तु है। जब उसका आधार लेकर कल्पना या भावना उठ खड़ी होती है अर्थात् जब उसका संचार भावक्षेत्र में होता है तब उच्च कोटि के भावात्मक रहस्यवाद की प्रतिष्ठा होती है। रहस्यवाद दो प्रकार का होता है—भावात्मक और साधनात्मक। हमारे यहाँ का योगमार्ग साधनात्मक रहस्यवाद है। यह अनेक प्राकृत और जटिल अभ्यासों द्वारा मन को अव्यक्त तथ्यों का साक्षात्कार कराने तथा साधक को अनेक अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त कराने की आशा देता है। तंत्र और रसायन भी साधनात्मक रहस्यवाद हैं, पर निम्न कोटि के। भावात्मक रहस्यवाद की भी कई श्रेणियाँ हैं जैसे, भूत प्रेत की सत्ता मानकर चलनेवाली भावना, परम सत्ता के रूप में एक ईश्वर की सत्ता मानकर चलनेवाली भावना स्थूल रहस्यवाद के अंतर्गत होगी। अद्वैतवाद या ब्रह्मवाद को लेकर चलनेवालो भावना से सूक्ष्म और उच्चकोटि के रहस्यवाद की प्रतिष्ठा होती है। तात्पर्य यह कि रहस्वभावना किसी विश्वास के आधार पर चलती है, विश्वास करने के लिये कोई नया तथ्य या सिद्धांत नहीं उपस्थित कर सकती। किसी नवीन ज्ञान का उदय उसके द्वारा नहीं हो सकता। जिस कोटि का ज्ञान या विश्वास होगा उसी कोटि की उससे उद्भूत रहस्यभावना होगी।

अद्वैतवाद का प्रतिपादन सबसे पहले उपनिषदों में मिलता है। उपनिषद भारतीय ज्ञानकांड के मूल हैं। प्राचीन ऋषि तत्वचिंतन द्वारा ही अद्वैतवाद के सिद्धांत पर पहुँचे थे। उनमें इस ज्ञान का उदय बुद्धि की स्वाभाविक क्रिया द्वारा हुआ था, प्रेमोन्माद या बेहोशी की दशा में सहसा एक दिव्य आभास या इलहाम के रूप में नहीं। विविध धर्मों का इतिहास लिखनेवाले कुछ पाश्चात्य लेखकों ने उपनिषदों के ज्ञान को जो रहस्यवाद की कोटि में रखा है, वह उनका भ्रम या दृष्टिसंकोच है। बात यह है कि उस प्राचीन काल में दार्शनिक विवेचन को व्यक्त करने की व्यवस्थित शैली नहीं निकली थी। जगत् और उसके मूल कारण का चिंतन करते करते जिस तथ्य तक वे पहुँचते थे उसकी व्यंजना अनेक प्रकार से वे करते थे। जैसे आजकल किसी गंभीर विचारात्मक लेख के भीतर कोई मार्मिक स्थल आ जाने पर लेखक की मनोवृत्ति भावोन्मुख हो जाती है और वह काव्य की


  1. दि पैशन फार इनटेलेक्चुअल ऐक्सट्रैक्शंस व्हैन ट्रान्सफर्ड टु दि लिटरेचर आफ इमैजिनेशन बिकम्स ए पैशन फार व्हाट इज़ ग्रैंडियोर्स ऐण्ड वेज इन सेंटिमेंट ऐंड इन इमैजरी। दि ग्रेट लारिएट आफ यूरोपियन डिमाक्रेसी विक्टर ह्यूगो, एग्जिबिट्स ऐटवन्स द डिमाक्रिटिक लव ग्राफ ऐब्स्ट्रेक्ट आइडियाज, दि डिमाक्रेटिक डिलाइट इन व्हट इज ग्रैंडियोर्स (ऐज वेल ऐज व्हट इज ग्रैंड) इन सेंटिमेंट, ऐंड दि डिमाक्रेटिक टेंडेंसी टुवर्ड्स ए पोइटिकल पैनथेइज्म।

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    —डाउडेंस 'न्यू स्टडीज इन लिटरेचर' (इंट्रोडक्शन)