पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/१२८

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नामरूपात्मक दृश्य जबतक ध्यान की परमावस्था द्वारा एकदम मिटा न दिए जाएँ, तबतक हमें इनका कुछ इंतजाम करके चलना चाहिए। जबकि हम अपने रतिभाव को पूर्णतया दूसरे (अदृश्य) पक्ष में लगाना चाहते हैं तब पहले उसे दृश्य पक्ष से धीरे धीरे सुलझाकर अलग करना पड़ेगा। साधना के व्यवहारक्षेत्र में हमें ईश्वर और जगत्, ये दो पक्ष मानकर चलना ही पड़ेगा। तीसरे हम ऊपर से होंगे। इसी से भक्ति के साथ एक ओर तो वैराग्य लगा दिखाई पड़ता है, दूसरी ओर योग।[]

'कल्ब क्या है’, इसपर कुछ विचार हो चुका। जबकि कल्ब पर पड़े हुए प्रतिबिंब का ही आत्मा को बोध होता है तब वह शुद्ध वेदांत की दृष्टि से आत्मा के साथ लगा हुआ अंतःकरण ही है और जड़ प्रकृति का ही विकार है। प्रकृति का विकार होने से वह भी 'जगत्' के अंतर्भूत है। इस पद्धति पर चलने से हम वेदांत के 'प्रतिबिंबवाद' पर पहुँचते हैं। जायसी ने इसी भारतीय पद्धति का अनुसरण करके जगत् को दर्पण कहा है जिसमें ब्रह्म का प्रतिबिंब पड़ता है।

'कल्ब या हृदय को भी सूफियों ने जो रूह (आत्मा) के समान अभौतिक माना है वह अपने प्रेममार्ग या भक्तिमार्ग की भावना के अनुसार उसे परमात्मा के नित्य स्वरूप के अंतर्भूत करने के लिये। जैसा कि गोस्वामी तुलसीदास जी की आलोचना में हम कह चुके हैं, परोक्ष 'चित्' और परोक्ष 'शक्ति' मात्र की भावना से मनुष्य की वृत्ति पूर्णतया तुष्ट न हुई, इससे वह परोक्ष 'हृदय' की खोज में बराबर रहा। भक्ति मार्ग में जाकर परमात्मा का 'हृदय' मनुष्य को मिला और मनुष्य की संपूर्ण सत्ता का एक परोक्ष आधार प्रतिष्ठित हो गया। मनुष्य का हृदय मानो उस परोक्ष हृदय के बिना अकेले ऊबता सा था। किस प्रकार उस 'परोक्ष हृदय' का आभास ईसाई मत ने पहले पहल संसार की भिन्न भिन्न जातियों को दिया, इसका वर्णन अंग्रेज कवि ब्राउनिंग ने बड़े मार्मिक ढंग से किया है। कारसिश नामक एक विद्वान् अरब हकीम की भेंट लाजरस नामक एक यहूदी से होती है जो अपनी जाति के एक ईसाई हकीम द्वारा अपने मरकर जिलाए जाने की बात कहता है और ईसाई मत के प्रेमतत्व का संदेश भी सुनाता है। अब हकीम उस यहूदी से मिलने का वृत्तांत अपने एक मित्र को लिखते हुए उक्त प्रेममार्ग की चर्चा इस प्रकार करता है—

'दि वेरी गाड! थिंक एबिब डस्ट दाऊ थिंक?
सो द आल-ग्रेट वेयर द आल -लविंग टू—
सो, थ्रू दि थन्डर कम्स ए ह्यूमन वायस,
सेइंग, 'ओ हार्ट आई मेड, ए हार्ट वीट्स हियर!
फेस, माइ हैन्ड्स फैशन्ड, सी इट इन माइसेल्फ्।
दाऊ हैस्ट नो पावर, नार मेयस्ट कन्सीव आफ माइन।
बट लव गेव दी विथ माइसेल्फ टू लव,
ऐंड दाउ मस्ट लव भी हू हैव डाइड फार दी'।


  1. यहाँ 'योग' शब्द का व्यवहार उसी अर्थ में है जो 'याज्ञवल्क्य स्मृति' में है—संयोगो योग इत्युक्तो जीवात्मपरमात्मनः।