पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/११६

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एक अवसर पर प्रदर्शित मनोवृत्ति स्वभाव के अंतर्गत तभी समझी जा सकती है जब वह या तो साधारण से अधिक मात्रा में हो अथवा वह ऐसे शब्दों में व्यक्त की जाय जिनसे उसका स्वभावगत होना पाया जाय। जैसे 'चाहे लोग कितना ही बुरा कहें', 'मैं इतना धन छोड़ नहीं सकता' अथवा 'चार पैसे के लिये तो कोस भर दौड़ा जाऊँ', 'इसमें से चार पैसे तुम्हें कैसे दे दूँ?' पर रत्नसेन के लोभ में इन दोनों में से एक बात भी नहीं पाई जाती। वह लोभवाला प्रसंग केवल इस उपदेश के निमित्त जोड़ा गया है कि बहुत अधिक संपत्ति देखकर बड़े बड़े त्यागियों को भी लोभ हो जाता है।

रत्नसेन की व्यक्तिगत विशेषता की झलक हमें उस स्थल पर मिलती है जहाँ गोरा बादल के चेताने पर भी वह अलाउद्दीन के छल को नहीं समझता और उसके साथ गढ़ के बाहर तक चला जाता है। दूसरे पर छल का संदेह न करने से राजा के हृदय की उदारता और सरलता तथा नीति की दृष्टि से अपनी रक्षा का पूरा ध्यान न रखने में अदूरदर्शिता प्रकट होती है।

जातिगत स्वभाव का आभास इस घटना से मिलता है। दिल्ली से छूटकर जिस दिन राजा चित्तौर आता है उसी दिन रात को पद्मिनी से देवपाल की दुष्टता का हाल सुनकर क्रोध से भर जाता है और सवेरा होते ही बिना पहले से किसी प्रकार की तैयारी किए, देवपाल को बाँधने की प्रतिज्ञा करके कुंभलनेर पर जा टूटता है। पेट में साँग घुसने पर भी वह मरने के पहले देवपाल को मारकर बाँधता है। प्रतिकार की यह प्रबल वासना राजपूतों का जातिगत लक्षण है। वीर लड़ाकी जातियों में प्रतिकारवासना बड़ी प्रबल हुआ करती है। अरबों का भी यही हाल था।

पद्मावती—नायिका होने से पद्मावती के चरित्र में भी आदर्श ही की प्रधानता है। चित्तौर आने के पूर्व वह सच्ची प्रेमिका के रूप में दिखाई पड़ती है। जब रत्नसेन को सूली की आज्ञा होती है तब वह भी प्राण देने को तैयार होती है। इसके उपरांत सिंहल से चित्तौर के मार्ग में ही उसमें चतुर गृहिणी के गुण का स्फुरण होने लगता है। समुद्र में जहाज नष्ट हो गए और राजा रानी बहकर दो घाट लगे। राजा का खजाना और हाथी घोड़े सब डूब गए। समुद्र के यहाँ से जब राजा रानी विदा होकर चलने लगे तब राजा को समुद्र ने हंस, शार्दूल आदि पाँच अलभ्य वस्तुएँ दीं और रानी को लक्ष्मी ने पान के बीड़े के साथ कुछ रत्न दिए। जगन्नाथ पुरी में आने पर राजा ने जब देखा कि उसके पास उन पाँच वस्तुओं के सिवा कुछ द्रव्य नहीं है तब वह मार्गव्यय की चिंता में पड़ गया।[] उसी समय पद्मावती ने वे रत्न बेचने के लिये निकाले जो लक्ष्मी ने विदा होते समय छिपाकर


  1. यद्यपि समुद्र से विदा होते समय 'और दीन्ह बहु रतन पखाना' कवि ने कहा है पर जगन्नाथपुरी में आने पर राजा के पास कुछ भी नहीं रह गया था, यह स्पष्ट लिखा है—राजै पद्मावति सौं कहा। साँठि नाठि, किछ गाँठि न रहा।' अब या तो यह मानें कि समुद्र का दिया हुआ रत्न द्रव्य सब रास्ते में खर्च हो गया अथवा यह मानें कि समुद्र से उन पाँच वस्तुओं के अतिरिक्त द्रव्य मिलने का प्रसंग प्रक्षिप्त है।