पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/९६

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जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 97 जातियों के सच्चे हमदर्द, महान जनवादी तथा धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे, दलितों के हितों को प्राथमिकता देने, उनके हित में अपनी सारी शक्ति लगा देने से कभी विचलित नहीं हुए। चाहे विधवा विवाह का सवाल हो या शिक्षा का, शराब की दुकानों का मसला हो या जातिवादी शोषण का, नौकरशाही के दमन का मसला हो या महाजनों की लूट तथा जमीन से किसानों की बेदखली का; भारत की आर्थिक लूट का मसला रहा हो या फिर आम जनता का पैसा फूंककर नया बाजार बनाने का या वायसराय के स्वागत के लिए सजावट करने तथा शाही मेहमान को भोज देने का; हर सवाल पर, हर मौके पर उन्होंने बेहिचक और पूरी तरह निर्भय होकर आम जनता के हितों की रक्षा की । अछूतों के प्रति उनका भावात्मक लगाव अभूतपूर्व और बेमिसाल था और उनकी न्याय की धारणा सभी उत्पीड़ित जातियों पर समान रूप से लागू होती थी । जातिवादी भेद भावना तो उन्हें छू भी नहीं गयी थी। उन्होंने मुसलमानों तथा ईसाइयों के लिए भी समान दर्जे की मांग की। इसमें अचरज नहीं कि आंदोलन का मूल नाम 'सत्यशोधक' आंदोलन था; यह आंदोलन ब्राह्मणों की सर्वोच्चता पर आधारित हिंदू समाज व्यवस्था के झूठ, अन्याय और दोगलेपन का विरोध करने वाला आंदोलन था। उन्होंने ब्राह्मणों और उनकी विचारधारा के खिलाफ अपना धर्म युद्ध छेड़ रखा था । उस जमाने में, जबकि हिंदू जाति व्यवस्था में ब्राह्मणों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था, जातिवादी असमानता के विरुद्ध और सबकी समानता के लिए चलने वाले किसी भी संघर्ष की धार ब्राह्मणों के खिलाफ होनी स्वाभाविक ही थी। इसके साथ ही दूसरी कई बातें भी इस रुझान को मजबूत कर रही थीं । ज्योतिबा की पीढ़ी पेशवा बाजीराव द्वितीय के शासन के भयावह दिनों को भूल नहीं सकी थी । वाजीराव द्वितीय के दौर में जो स्थिति थी, उसके बारे में ज्योतिबा के जीवनी लेखक, कीर ने लोकहितवादी से यह उद्धरण दिया है : 'सूखे या अकाल के जमाने में भी अगर किसान उसे, उसका निश्चित हिस्सा नहीं दे पाते थे तो जलते हुए कड़ाहों से उबलता हुआ तेल उनके बच्चों के शरीर पर डाला जाता था। उनकी झुकी हुई पीठों पर कोड़ों की मार पड़ती थी और दम घोंट देने वाले धुएं में उनका सिर दे दिया जाता था। उनकी नाभि और कानों में बारूद के विस्फोट किये जाते थे।' लोकहितवादी के ही उद्धरण के अनुसार ब्रिटिश शासकों ने जब बाजीराव द्वितीय को गद्दी से हटाया था तो महिलाओं ने खुशियां मनायीं और कहा था कि “हमें खुशी है कि बाजीराव का शासन खत्म हो गया। उस बदमाश का ठीक ही हश्र हुआ, वह इसी लायक था। दूसरी बात यह थी कि राजनैतिक सत्ता खो देने के बावजूद हिंदू समाज में