पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/९५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

96 / जाति क्यों नहीं जाती ? जाति प्रथा और छुआछूत पर प्रहार करने वाली जनवादी लहर का उठना तो अवश्यंभावी था ही। ये दोनों एक ही प्रक्रिया के दो पहलू थे। यह प्रक्रिया दरअसल, पूर्व- पूंजीवादी संबंधों के बीच से एक नये राष्ट्र के बनने की प्रक्रिया थी। जातिविरोधी गैर ब्राह्मण नेताओं द्वारा जाति प्रथा की असमानताओं और जातिवादी चेतना पर प्रहार दरअसल पुरानी सामंती व्यवस्था की विचारधारा और उसके ऊपरी ढांचे पर करारा हमला था। समाज को बदलने के लिए जरूरी था कि उस विचारधारा और चेतना पर प्रहार किया जाय, ऊपरी ढांचे को नंगा किया जाय, उसे कमजोर किया जाय । यह तर्क तो शायद ही कोई देगा कि आर्थिक स्थिति को धीरे-धीरे बदलने दो, नयी आर्थिक वास्तविकताओं को नये वर्गों को उभरने दो और उसके बाद जाति व्यवस्था और जातिवादी चेतना अपने आप खत्म हो जायेगी । कोई भी प्रतिक्रियावादी विचारधारा, अगर उसके खिलाफ संघर्ष न चलाया जाय, जनवादी और सामाजिक प्रगति की राह में आर्थिक वास्तविकता में बदलाव की राह में एक बाधा बन जाती है। वह परिवर्तन की गाड़ी में ब्रेक का काम करती है। भारत में जातिवादी प्रभुत्व तथा जातिवादी चेतना, ऐसे ही ब्रेक का काम कर रही थी और जनवादी क्रांतिकारी एकता को आगे बढ़ने से रोक रही थी। इसलिए जाति- व्यवस्था पर हमला करके, शुरू-शुरू के दौर के जातिविरोधी नेताओं ने एक शानदार काम किया था। यह कार्रवाई इसलिए और भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि ऊंची जातियों में जन्मे अनेक राष्ट्रवादी समकालीन नेता, जो पूंजीवादी बुद्धिजीवी वर्ग के एक दूसरे हिस्से का प्रतिनिधित्व करते थे, खुद भी अभी जातिवादी चेतना से मुक्त से नहीं हुए थे और उनमें से कुछ, मसलन तिलक, तो इस व्यवस्था का जोर-शोर से समर्थन तक करते थे। याद रखने वाली बात है कि तिलक ने 'सहमति की आयु ' (विवाह के लिए) संबंधी विधेयक का ही विरोध नहीं किया था बल्कि अनिवार्य प्राइमरी शिक्षा संबंधी विधेयक का भी विरोध किया था । हम पहले ही कह चुके हैं कि इस समर्थन, और आगे चलकर जाति -प्रथा से समझौते की जड़ में, बुद्धिजीवी वर्ग का सामंती-संबंधों के साथ समझौता और गठजोड़ ही था । इस संदर्भ में महाराष्ट्र के जातिवादविरोधी आंदोलन के विकास पर संक्षेप में विचार करना अप्रासंगिक नहीं होगा। इससे हम उसकी सीमाओं और उपलब्धियों को सही तरह से समझ सकेंगे। - ज्योतिबा फुले का आंदोलन महाराष्ट्र में जात-पांतविरोधी आंदोलन की शुरुआत का इतिहास ज्योतिबा फुले के महान व्यक्तित्व से जुड़ा है। ज्योतिबा, जो कि गरीबों तथा उत्पीड़ित