पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/९४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 95 जातिवादविरोधी धारा लेकिन, उस दूसरी धारा का क्या हुआ जिसने जाति-व्यवस्था की असमानताओं पर सीधे हमला किया था। जो कई स्थानों पर तो कांग्रेस के मैदान में आने से पहले ही वजूद में थी ? इस भयावह जाति-व्यवस्था के खिलाफ साहस के साथ विद्रोह का झंडा बुलंद करने वाले इन आंदोलनों की इतनी दयनीय परिणति क्यों हो गयी ? किसी जमाने में देश में कम से कम उसके कुछ हिस्सों में उथल-पुथल मचा देने वाले ब्राह्मण विरोधी आंदोलनों ने शायद ही कहीं जातिप्रथा की जड़ें हिलाने में सफलता प्राप्त की हो। आम्बेडकर जैसे प्रख्यात नेता के नेतृत्व के बावजूद अछूतों के महान संघर्ष, छुआछूत के खात्मे के वांछित नतीजों तक पहुंचने में नाकामयाब रहे । अछूतों पर अत्याचार आज भी जारी है, न तो इन संघर्षों से यह समस्या हल हुई और न धर्म-परिवर्तन के जरिये बौद्ध बन जाने जैसे शार्टकटों से । इससे बड़ी बिडंबना और क्या होगी कि नव बौद्धों के नेताओं को फिर से यह मांग करनी पड़ी कि पदों या नौकरियों के आरक्षण आदि के सिलसिले में उन्हें अनुसूचित जातियों का ही माना जाय । तथाकथित निचले तबके या जातियां, दरअसल, हिंदू समाज का बहुसंख्यक हिस्सा हैं। तब फिर क्या वजह है कि यह बहुसंख्यक हिस्सा जातिगत असमानता के धब्बे को धोने और चंद ब्राह्मणों या सवर्णों के इस षड्यंत्र को शिकस्त देने में कामयाब न हो सका? सचाई यह है कि जातिवाद का जहर, इससे उत्पीड़ित लोगों के दिमाग में, उस जनता और निचले वर्गों के दिमाग में जो पुनः अनेक जातियों और उपजातियों में बंटे हुए हैं, भीतर तक बैठ गया है। इनमें से हरेक अपने प्रति होने वाले अन्याय को तो पहचानता है। लेकिन अपने बेहतर स्तर की वजह से अपने से नीचे वाले के प्रति होने वाले अन्याय को दूर करने के लिए तैयार नहीं। महाराष्ट्र में ब्राह्मणविरोधी आंदोलन में निचली जातियों के सभी हिस्सों के शरीक होने की उम्मीद की जाती थी, लेकिन उसके बावजूद वास्तविकता यह थी कि अछूतों को उनके अपने हाल पर ही छोड़ दिया गया था। आम्बेडकर को भी एक बार तो यह कहना पड़ा था कि मराठा लोग ब्राह्मणों से कहीं ज्यादा अछूतों के उत्पीड़क हैं । सच्ची बात तो यह है कि कांग्रेस का राष्ट्रीय पूंजीवादी नेतृत्व, जाति के प्रश्न पर अपने समझौता परस्त रुख और पुनरुत्थानवादी रवैये को अपनाकर भी इसीलिए सफल हो सका क्योंकि यह रवैया जनता की चेतना के अनुकूल था । इस मामले में शुरुआती दौर के जातिवादविरोधी नेता बाद के कांग्रेसी नेताओं से बिल्कुल भिन्न थे । साम्राज्यवादविरोधी राष्ट्रीय चेतना के विकास के साथ-साथ