पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/९२

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जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 93 प्रतिरोध में बिखराव पैदा करने और पृथक जातियों तथा सांप्रदायिकता की भावना को बनाये रखने का था। उस समय मौजूद जातिवादी असमानताओं, सवर्ण हिंदुओं के हाथों अछूतों पर अमानवीय अत्याचारों और हिंदुओं तथा मुसलमानों के बीच की फिरकापरस्ती की दीवार ने साम्राज्यवादियों को अपना यह खेल खेलने का मौका दे दिया। लेकिन, साम्राज्यवादी इस खेल को हमेशा-हमेशा तक जारी नहीं रख सकते थे। वे खुद, मौजूदा भूमि-संबंधों को बनाये रखने के दृढ़ समर्थक थे, इसलिए वे अछूतों या दलित वर्गों के स्तर में कोई वास्तविक बदलाव ला ही नहीं सकते थे। आम्बेडकर ने खुद यह चेतावनी दी थी : मुझे लगता है कि ब्रिटिश शासन इन दुर्भाग्यपूर्ण हालात का जो इस तरह प्रचार कर रहा है उसके पीछे मकसद यह नहीं है कि ये परेशानियां दूर हों । इसके पीछे कारण सिर्फ यह है कि उनकी यह चिंता भारत की राजनैतिक प्रगति को रोकने में अच्छी तरह मदद करती है। जहां तक आपका सवाल है, ब्रिटिश सरकार ने इस व्यवस्था को जैसा पाया था, उसी रूप में ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया। सरकार उस व्यवस्था को उसी रूप में ज्यों का त्यों सुरक्षित रखे हुए है, जैसा कि एक चीनी दर्जी ने किया था जिसे नमूने के तौर पर पुराना कोट दिया गया तो उसने बड़े गर्व के साथ ठीक उसी की नकल पर थेगलियों की जगह थेगलियां व जोड़ों की जगह जोड़ लगाकर एकदम वैसा ही कोट बना दिया। आपकी तकलीफें कोई दूर नहीं कर सकता। आप खुद ही अपनी तकलीफें दूर कर सकते हैं। और आप उन्हें तभी दूर कर सकते हैं जबकि आपके हाथों में राजनैतिक सत्ता हो । इस सत्ता का कोई भी हिस्सा आपको तब तक नहीं मिल सकता, जब तक कि ब्रिटिश शासन ज्यों का त्यों कायम है। स्वराजी संविधान में ही आपको राजनैतिक सत्ता मिल सकती है, इसके बिना आप अपने लोगों की मुक्ति की आशा नहीं कर सकते । यहां यह बात काबिले गौर है कि देश में तीन शक्तिशाली वर्गों के हित से जुड़े लोग, यानी साम्राज्यवादियों, जमींदारों और पूंजीवादी नेतृत्व से जुड़े लोग, जमींदारों और पूर्व पूंजीवादी भू-संबंधों की रक्षा करके जाति प्रथा की ही हिफाजत में लगे हुए थे। आजादी के बाद का समझौता यह किस्सा आजादी के बाद भी जारी रहता है । अछूतों तथा दूसरे वर्गों के