पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/९१

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92 / जाति क्यों नहीं जाती ? ऐसा नहीं करना चाहिए। भाव विह्वल होकर दिये गये उक्त वक्तव्य में कहा तो सब कुछ गया है; मगर जमींदारों और हिंदू धर्म को सुरक्षित रखने के लिए समान तीव्र इच्छा इस वक्तव्य को औपचारिक घोषणा भर बनाकर छोड़ देती है। राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग भूमि-संबंधों में बुनियादी बदलाव लाने की कल्पना भी करने में असमर्थ था। उसने समाज सुधार को ही राष्ट्रीय एकता के अपने संघर्ष का नारा बनाया । पूंजीवादी नेतृत्व के वर्गीय गठजोड़ ने राष्ट्रीय आंदोलन को शिक्षा, सामाजिक मेल-मिलाप, अंतर्जातीय भोजों और "हम शुरू से आखिर तक भारतीय ही हैं " जैसे वक्तव्यों आदि आगे नहीं बढ़ने दिया। थे इससे स्पष्ट हो जाता है कि पूंजीपति वर्ग के अपने हित जातिवाद के खिलाफ लड़ाई छेड़ने के रास्ते में आड़े आते थे। इस रवैये और गठबंधन के मजबूत होने की एक वजह यह भी थी कि ज्यादातर नेता उच्च जातियों के ही थे। यहां यह सवाल उठता है कि फिर भी यह कैसे संभव हुआ कि अपनी सीमाओं और खुले तौर पर प्रतिक्रियावादी वर्गीय नीतियों के बावजूद, कांग्रेस जनता को अपने पीछे लामबंद करने और ब्रिटिश शासन को शिकस्त देने में कामयाब हो गयी? यह कैसे संभव हुआ कि विभिन्न निचली जातियों से संबद्ध किसान जनता के व्यापक हिस्से कांग्रेस में शरीक हो गये ? राष्ट्रवाद और साम्राज्यवादविरोध की इस अपील ने उन तमाम किसानों को आकर्षित किया जिन्होंने अपनी तकलीफों का कारण देश में विदेशी शासन का होना माना । यह एक नयी वर्गीय वास्तविकता थी । यह साम्राज्यवादी शोषण से पैदा होनेवाली एकता की वास्तविकता थी जिसे कांग्रेस ने पूरी तरह इस्तेमाल किया और जो उसका विरोध करने के लिए आगे आये वे पूरी तरह पिट गये । पुराने सामंती शोषण के ऊपर आधुनिक साम्राज्यवादी शोषण के थोपे जाने से श्रेणीबद्ध जातिवादी ढांचे के बीच ही राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा हो रही थी । साम्राज्यवादी ताकतें जहां कांग्रेसी नेता विभिन्न जातियों और संप्रदायों को राष्ट्रीय झंडे के नीचे एकजुट कर रहे थे वहां ब्रिटिश साम्राज्यवादी भी चुप नहीं बैठे हुए थे। ब्रिटिश शासकों ने, मुसलमानों, पिछड़े समुदायों और अछूतों को पृथक निर्वाचन क्षेत्र, सरकारी नौकरियों में आरक्षण तथा शिक्षा संबंधी सुविधाएं देकर, राष्ट्रीय पूंजीपति वर्ग की इस योजना को असफल बनाने की चाल चली। उनका उद्देश्य पिछड़े हुए तबकों में उन्नति की उम्मीद जगाने, उन्हें आम संघर्ष से अलग करने व व्यापक जन