पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/९०

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जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 91 राष्ट्रीय एकता और जाति राष्ट्रीय आंदोलनों के विकास के साथ जातिवाद और फिरकापरस्ती के प्रति रवैये में बदलाव आना भी लाजिमी था। अपने झंडे के तले न्यूनतम आवश्यक एकता कायम करने के लिए, राष्ट्रीय पूंजीवादी नेतृत्व को जाति और असमानता के सवाल पर अपना अब तक चला आ रहा यथास्थितिवादी रवैया छोड़ना पड़ा। किसानों व निचले तबके की अनेक जातियों में बंटी ग्रामीण जनता को अपने साथ लेने की जरूरत ने पूंजीवादी बुद्धिजीवी वर्ग को इस सवाल पर ज्यादा लचीला रुख अपनाने के लिए और अपने रवैये को उन जनवादी दावों के अनुरूप बनाने के लिए मजबूर कर दिया जिन्हें वे जनता की ओर से पेश कर रहे थे। जाति के खात्मे के बिना ही जातियों की समानता का प्रचार किया गया। राष्ट्रीय नेतृत्व को आमतौर पर जाति की और खासतौर पर छुआछूत की- दोनों ही समस्याओं का सामना करना पड़ा। सामंती भूमि संबंधों के साथ समझौते के अपने नजरिये को कायम रखते हुए ही, पूंजीवादी नेतृत्व ने अपनी नीति तय की। यह नीति ऊपरी तौर पर पिछली नीति से भिन्न होते हुए भी, अपनी सारवस्तु में पिछली नीति के समान ही थी। गांधी ने घोषणा कर दी कि छुआछूत पाप है। उन्होंने कहा : छुआछूत को खत्म करना एक तपस्या का काम है। सवर्ण हिंदुओं को हिंदुत्व के प्रति और स्वयं अपने प्रति किये गये इस पाप को दूर करने के लिए यह तप करना होगा। जरूरत 'अछूतों' की शुद्धि की नहीं, बल्कि कथित सवर्णों की ही शुद्धि की है। ऐसा कोई दुर्गुण नहीं जो सिर्फ अछूतों में ही पाया जाती हो, यहां तक की गंदगी और सफाई की कमी का दुर्गुण भी नहीं । यह सिर्फ हमारा अहंकार है, जो श्रेष्ठ समझे जाने वाले हम हिंदुओं को अपनी खुद की बुराइयों के प्रति अंधा बनाये हुए है और अपने उन उत्पीड़ित बंधुओं की बुराइयों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है जिन्हें हमने दमित किया है और आज भी कर रहे हैं। मुझे टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाय, यह मुझे मंजूर है लेकिन दलित वर्गों को मैं अपना न मानूं यह मंजूर नहीं। हिंदू अगर अपने महान धर्म पर से, छुआछूत का यह धब्बा नहीं हटाते तो वे कभी भी आजादी प्राप्त करने के योग्य नहीं हो सकते; कभी आजादी हासिल कर ही नहीं सकते। मैं हिंदू धर्म को अपने प्राणों से भी बढ़कर प्यार करता हूं । इसलिए यह धब्बा मेरे लिए, एक असह्य बोझ बन गया है अगर हम समानता के आधार पर एक साथ मिल बैठने के अधिकार से अपने लोगों की आबादी के एक पांचवे हिस्से को वंचित कर देंगे तो फिर हम ईश्वर में अपने विश्वास का ही निषेध करेंगे। हमें