पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/८५

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86 / जाति क्यों नहीं जाती ? संबंध भी इसी संपत्ति शाली वर्ग से था। इसके अलावा बीसवीं शताब्दी में पूंजीवाद के पतन के इस दौर में पूंजीपति वर्ग एक दृढ़ सामंतवादविरोधी भूमिका अदा करने में समर्थ नहीं था - इस सचाई पर मार्क्सवादियों ने गौर किया था। दर असल, इसी सचाई पर गौर करते हुए लेनिन ने घोषणा की थी कि रूस में मजदूर वर्ग ही जनवादी क्रांति का नेतृत्व कर सकता है। इसकी सफलता के लिए मजदूर वर्ग का नेतृत्व अनिवार्य है। बाद की क्रांतियां इसकी गवाह हैं कि मजदूर वर्ग के नेतृत्व में ही कृषि-क्रांति सहित, साम्राज्यवादविरोधी क्रांतियां कामयाब हुई हैं जिनसे समाजवाद के लिए रास्ता तैयार हुआ है। चीन, कोरिया, वियतनाम इसके उदाहरण हैं, जहां कृषि-क्रांति पूरी नहीं हुई, वहां साम्राज्यवादविरोधी क्रांति अधूरी ही रह गयी । कुछ देशों, मसलन इंडोनेशिया, में इसकी परिणति फासीवाद में हुई । अविकसित देशों में से ज्यादातर देशों में, जहां पूंजीपति वर्ग ने अपना ही वर्चस्व बनाये रखा और कृषि- क्रांति को पूरा नहीं होने दिया, वहां पूर्व-पूंजीवादी विचारधाराएं और उनसे जुड़े संबंध बरकरार रहे हैं। नतीजा यही हुआ कि इन देशों में जनतंत्र को उखाड़ फेंका गया। आज भी पान-इस्लामिज्म, इस्लामिक गणराज्य, 'सीमित गणतंत्र' और इसी तरह की अनेक प्रतिक्रियावादी सामंती विचारधाराएं लोगों के दिमागों में घर किये बैठी हैं क्योंकि पूंजीवाद से पहले के जिन संबंधों या जिन कबीलाई संबंधों से ये विचारधाराएं जन्म लेती हैं उनकी जमीन अभी तक उपजाऊ है। हमारे देश के समाज- -सुधारकों ने भारत में कृषि-क्रांति और जातिगत व समुदायगत असमानताओं, पूर्वग्रहों तथा इनसे चालित दृष्टिकोणों के कायम बने रहने के बीच के इस महत्वपूर्ण रिश्ते को नहीं पहचाना है। उनके लिए जातिवाद और सांप्रदायिकता सामाजिक अन्याय भर हैं, जिनका उत्पादन के रिश्तों से कोई संबंध नहीं है। उनकी नजर में ये कुप्रथाएं सिर्फ पूर्वग्रह हैं जिनकी निंदा करके, इनमें विश्वास रखने वालों को इन्हें छोड़ देने पर राजी कर लेने भर से, इनसे मुक्त हुआ जा सकता है, इससे ज्यादा और कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। इनके खिलाफ संघर्ष को वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष से व इस व्यवस्था के पूर्व - पूंजीवादी तथा पूंजीवादी आधार के विरुद्ध संघर्ष से और वर्गीय शोषण के इसके आधार के विरुद्ध संघर्ष से जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है। उनके तईं यह संघर्ष आम जनवादी आंदोलन का यानी आधुनिक वर्ग-संघर्ष का हिस्सा नहीं होना चाहिए। कम्युनिस्ट पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ही अकेली पार्टी थी जिसने छुआछूत तथा जाति व्यवस्था के