पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/८३

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84 / जाति क्यों नहीं जाती ? तथा सारे हिंदू धर्म ग्रंथों में और इसीलिए अवतारों तथा पुनर्जन्म में विश्वास करता हूं। (2) मैं वर्णाश्रम धर्म में विश्वास रखता हूं। उसके मौजूदा आम- फहम तथा भद्दे रूप में नहीं बल्कि उसके वैदिक रूप में। (3) मैं गौ-रक्षा में विश्वास रखता हूं- आम तौर पर इसके लिये जानेवाले अर्थ से भी कहीं व्यापक अर्थ में और (4) मैं मूर्तिपूजा में अविश्वास नहीं करता । यह थी, राष्ट्रीय साम्राज्यवादी संघर्ष के दौर में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले राष्ट्रपिता की विचारधारा । इस विचारधारा के बावजूद, वे लाखों-लाख लोगों को राष्ट्रीय आंदोलन में खींच सके और थोड़ी देर के लिए जातीय विभाजनों से उन्हें ऊपर उठा सके। 1920-21 के दौर में भी लाखों मुसलमानों को राष्ट्रीय आंदोलन की आम धारा में खींचने वाले भी वही थे। मगर यह बात साफ थी कि इस तरह के पुरुत्थानवादी नजरिये और जाति -प्रथाविरोधी संघर्ष को साम्राज्यवादविरोधी संघर्ष से अलग करके रखने के कारण जाति भेद बरकरार रहे। इस दृष्टिकोण के चलते हिंदुओं और मुसलमानों के बीच की दूरी को खत्म करने की तो कल्पना करना ही बेकार था । जवाहरलाल नेहरू के आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष विचारों के बावजूद, राष्ट्रीय आंदोलन पर गांधीवादी दृष्टिकोण ही हावी रहा । कुछ आलोचक भूलवश इस दकियानूसी दृष्टिकोण को जातिवादी दबाव के सामने आत्म-समर्पण मानते हैं और सवर्ण राष्ट्रीय उच्च नेताओं के जातिवाद में विश्वास के परिणाम के ही रूप में इस प्रक्रिया को समझते हैं। यह बुनियादी तौर पर जाति व्यवस्था की रक्षा करनेवाले देशी सामंती भूमि-संबंधों के सामने, आधुनिक बुद्धिजीवी वर्ग का समर्पण ही था। इसका अर्थ यह नहीं है कि व्यक्तिगत स्तर पर जातिवादी चेतना की कोई भूमिका नहीं थी । यदि बुनियादी तौर पर अन्यायपूर्ण कृषि व्यवस्था को स्वीकार कर लिया गया तो चेतना का स्तर यही रहेगा। कृषि क्रांति का डर राष्ट्रीय आंदोलन के शुरुआती दौर में इसी तरह के दुहरे चरित्रवाला बुद्धिजीवी वर्ग हमारे यहां था । एक ओर उदीयमान पूंजीपति वर्ग के उद्देश्यों और हितों के साथ एकाकार होकर, नये लोकतांत्रिक मूल्यों की घोषणा करते हुए उसने साम्राज्यवादियों पर प्रहार किया, तो दूसरी ओर पुरानी सामंती व्यवस्था तथा संस्थाओं से गठजोड़ भी किया। पहले, विदेशी शत्रु पर हमला केंद्रित करने के उद्देश्य के रूप में इस गठजोड़ की वकालत की गयी। महाराष्ट्र तथा दूसरी जगहों पर सूदखोर विरोधी कानूनों का