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जाति, वर्ग और संपत्ति के संबंध / 83 विचारधारा की ओर मुड़ गये। रजनी पामदत्त ने लिखा है।

- मौजूदा सड़ांध तथा पतनशील भ्रष्ट अध्यात्मवाद, जर्जर ग्राम्य व्यवस्था के टूटे अवशेषों और चुकी हुई सभ्यता की दरबारी चकाचौंध की बोसीदा यादों के सहारे उन्होंने हिंदू संस्कृति के सुनहरे स्वप्न का जीर्णोद्वार करने की, उसको नये सिरे से निर्मित करने की कोशिश की। इस 'पवित्र' हिंदू-संस्कृति को वे अपना आदर्श, अपना पथप्रदर्शक बनाना चाहते थे। ब्रिटिश पूंजीवादी संस्कृति और विचारधारा की तेज बाढ़ भारतीय पूंजीपतियों और बुद्धिजीवियों को पूरी तरह से आक्रांत करती लगती थी। इसके खिलाफ उन्होंने खोद कर निकाली गयी इस हिंदू विचारधारा की कमजोर सी ढाल का सहारा लिया जबकि उस विचारधारा का वास्तविक जीवन स्थितियों में कोई प्राकृतिक आधार नहीं था। इस मत के अतिवादी अनुयायियों ने विजेताओं की संस्कृति कहकर, हर तरह के सामाजिक, वैज्ञानिक विकास का विरोध किया। प्राचीन परंपरा की हर चीज, यहां तक कि बुराइयों, विशेषाधिकारों और पोंगापंथी विचारों तक को आदर और सम्मान दिया गया इसमें शक नहीं कि पश्चिमी तौर-तरीकों के इस विरोध के साथ, लोकतंत्र और औद्योगिक विकास की मांगें भी जुड़ी हुई थीं । पुनरुत्थानवाद का मतलब था जाति-व्यवस्था की हिफाजत करना और उसको कायम रखना तथा उसके खिलाफ लड़ने में नाकामयाब होना । तिलक ने हर तरह के समाज-सुधार का, यहां तक कि विवाह की उम्र बढ़ाने तक का विरोध किया । तिलक जाति व्यवस्था में विश्वास रखते थे और उसकी वकालत करते थे। गांधी तक ने जो राष्ट्रीय आंदोलन के बाद के एक भिन्न दौर का प्रतिनिधित्व करते थे, पुनरुत्थानवाद पर उन्हीं की तरह पूरा भरोसा किया। प्रथम असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने हर विदेशी चीज, यहां तक कि पश्चिमी दवाई, पश्चिमी शिक्षा और रेलवे के खिलाफ खुला अभियान चलाया। गांधी ने एक बार यहां तक कहा कि “ईश्वर ने मनुष्य को दो पैर देकर उसकी गति को सीमित रखा, लेकिन, मनुष्य महत्वाकांक्षी बन बैठा और उसने रेल बना ली।" उन दिनों वे भारत में फिर से 'राम-राज' कायम करने की बात बार-बार दुहराते रहे थे। इसमें शक नहीं कि बाद के दौर में उनका दृष्टिकोण ज्यादा आधुनिक हो गया था, उसका ज्यादा पूंजीवादीकरण हो गया था, लेकिन अस्पृश्यता के खिलाफ अपने सारे अभियान के बावजूद वे पुनरुत्थानवादी दृष्टिकोण से ही बंधे । 1921 में ही उन्होंने घोषणा कर दी । कि वे सनातनी हिंदू हैं : मैं स्वयं को सनातनी हिंदू मानता हूं क्योंकि – (1) मैं वेद, उपनिषद, पुराण