पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/७३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भगत सिंह (1907 1931) " शहीदे-आज़म भगतसिंह और उनके साहस, वीरता, देशभक्ति, त्याग व बलिदान को सभी लोग जानते हैं। लेकिन भगतसिंह के व्यक्तित्व को सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं किया जा सकता, वे समाज की हर समस्या पर विचार करते थे। शोषण-उत्पीड़न के विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने विचार किया है। जैसा कि शिव वर्मा ने लिखा है "एक बुद्धिजीवी के रूप में भगतसिंह हम सबसे बहुत ऊंचे थे। जिस समय जल्लाद ने उनको जीवन के अधिकार से वंचित किया, वे मुश्किल से 24 वर्ष के थे। इतनी कम आयु में उन्होंने बड़े से अधिकार के साथ कई विषयों पर लिखा था ।" असल में भगतसिंह के पास केवल क्रांतिकारी नारे ही नहीं थे, बल्कि • देश की जनता को जागरूक बनाने का एक संपूर्ण कार्यक्रम था। भारतीय समाज के हर पहलू पर उनका एक नज़रिया था । अजेय कुमार अछूत - समस्या [ काकीनाडा में 1923 में कांग्रेस- अधिवेशन हुआ । मुहम्मद अली जिन्ना ने अपने अध्यक्षीय भाषण में अनुसूचित जातियों को, हिन्दू और मुस्लिम मिशनरी संस्थाओं में बाँट देने का सुझाव दिया । इस प्रकार अछूतों को धर्म के नाम पर बाँटने की कोशिश की। उसी समय जब इस मसले पर बहस का वातावरण था, भगतसिंह ने 'अछूत का सवाल' नामक लेख लिखा । यह लेख जून, 1928 के 'किरती' में 'विद्रोही' नाम से प्रकाशित हुआ था। - सं.] हमारे देश - जैसे बुरे हालात किसी दूसरे देश के नहीं हुए। यहाँ अजब- अजब सवाल उठते रहते हैं। एक अहम् सवाल अछूत- समस्या है। समस्या यह है कि 30 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में जो 6 करोड़ लोग अछूत कहलाते हैं, उनके स्पर्श मात्र से धर्म भ्रष्ट हो जायेगा ! उनके मन्दिरों में प्रवेश से देवगण नाराज हो उठेंगे ! कुएँ से उनके द्वारा पानी निकालने से कुआँ अपवित्र हो जायेगा! ये सवाल बीसवीं सदी में किये जा रहे हैं, जिन्हें कि सुनते ही शर्म आती है । हमारा देश बहुत अध्यात्मवादी है, लेकिन हम मनुष्य को मनुष्य का दर्जा देते