पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/७२

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जाति प्रथा पर विचार / 73 बिहार मंदिर सम्मेलन बिहार में हिन्दू धर्म के ठेकेदारों ने अपने सम्मेलन में हरिजनों के मंदिर प्रवेश का खूब जोरों के साथ विरोध किया और स्व. महारानी विक्टोरिया की धार्मिक निष्पक्षता की घोषणा की दुहाई दी । हिन्दू धर्म तो यह कहता है कि प्राणीमात्र में परमात्मा का वास है, सर्वात्मवाद का इतना ऊँचा आदर्श और किसी धर्म ने भी उपस्थित नहीं किया, मगर मुसलमानों में तो मेहतर भी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकता है, और यहाँ समाज का एक बड़ा भाग मंदिरों से बहिष्कृत किया जाता है। समाज का जो अंग बड़ी से बड़ी सेवा करता है, वह तो अछूत है, और जो तिलक लगाकर मुफ्त का माल उड़ाते हैं वह समाज का श्रेष्ठ अंग हैं। यह व्यवस्था हिन्दू धर्म को कलंकित करनेवाली है और हिन्दू समाज इस अनीति को अब सहन नहीं कर सकता। 29 जनवरी 1934 इस हिमाक़त की भी कोई हद है ? छूत-छात और जात-पाँत का भेद हिन्दू समाज में इतना बद्धमूल हो गया है, कि शायद उसका सर्वनाश करके ही छोड़े। खबर है कि किसी स्थान में एक कुलीन हिन्दू स्त्री कुएँ पर पानी भरने गयी। संयोगवश कुएं में गिर पड़ी। बहुत से लोग तुरन्त कुएं पर जमा हो गये और उस औरत को बाहर निकालने का उपाय सोचने लगे, मगर किसी में इतना साहस न था कि कुएं में उतर जाता। वहाँ कई हरिजन भी जमा हो गये थे। वे कुएँ में जाकर उस स्त्री को निकाल लाने को तैयार हुए, लेकिन हरिजन कुएँ में कैसे जा सकता था। पानी अपवित्र हो जाता। नतीजा यह हुआ कि अभागिनी स्त्री कुएँ में मर गयी । क्या छूत का भूत कभी हमारे सिर से उतरेगा ? 14 मई 1934