पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/६७

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68 / जाति क्यों नहीं जाती ? कहा जाता है कि अछूतों की आदतें गंदी हैं, वे रोज स्नान नहीं करते, निषिद्ध कर्म करते हैं, आदि । क्या जितने सछूत हैं, वे रोज स्नान करते हैं, क्या काश्मीर और अल्मोड़ा के ब्राह्मण रोज़ नहाते हैं ? हमने इसी काशी में ऐसे ब्राह्मणों को देखा है, जो जाड़ों में, महीने में एक बार स्नान करते हैं। फिर भी वे पवित्र हैं। यह इसी अन्याय का प्रायश्चित है कि संसार के अन्य देशों में हिंदू मात्र को अछूत समझा जाता है। फिर शराब क्या ब्राह्मण नहीं पीते ? इसी काशी में हजारों मदसेवी ब्राह्मण- और वह भी तिलकधारी- निकल आयेंगे, फिर भी वे ब्राह्मण हैं। ब्राह्मणों के घरों में चमारियाँ हैं, फिर भी उनके ब्राह्मणत्व में बाधा नहीं आती, किन्तु अछूत नित्य स्नान करता हो, कितना ही आचारवान् हो, वह मन्दिर में नहीं जा सकता। क्या इसी नीति पर हिन्दू धर्म स्थिर रह सकता है ? इस नीति के कुफल हम देख चुके, अब सावधान हो जाना चाहिए । - हमारी समझ में नहीं आता हम किस मुंह से यह दावा कर सकते हैं कि हम पवित्र और अमुक अपवित्र है। किसी ब्राह्मण महाजन के पास उसी का भाई ब्राह्मण असामी क़र्ज़ मांगने जाता है, ब्राह्मण महाजन एक पाई भी नहीं देता, उस पर उसका विश्वास नहीं है। वह जानता है, इसे रुपये देकर वसूल करना मुश्किल हो जायगा। उसी ब्राह्मण के पास अछूत असामी जाता है और बिना किसी लिखा-पढ़ी के रुपये ले आता है। ब्राह्मण को उस पर विश्वास है । वह जानता है, यह बेईमानी नहीं करेगा। ऐसे सत्यवादी, सरल हृदय, भक्ति-परायण लोगों को हम अछूत के नाम से पुकारते हैं, उनसे घृणा करते मगर हमारा विश्वास है, हिन्दू समाज की धार्मिक चेतना जाग्रत हो गयी है, अब वह ऐसे अन्यायों को सहन न करेगा। राष्ट्रों के जीवन का रहस्य उसकी समझ में आ गया है, वह ऐसी नीति का साथ न देगा, जो उसके जीवन की जड़ काट रही है । 21 नवम्बर 1932 हरिजन बालकों के लिए छात्रालय नागपुर में हरिजन बालकों के लिए अलग एक छात्रालय बनाया गया है । इससे तो अछूतपन मिटेगा नहीं, और दृढ़ होगा। उन्हें तो साधारण छात्रालयों में बिना किसी विचार के स्थान मिलना चाहिए। 5 दिसम्बर 1932