पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/६४

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तुम्हारी जात-पांत की क्षय / 65 है - हिन्दुस्तानी, भारतीय । हिन्दुस्तान से बाहर यूरोप और अमेरिका में ही नहीं, पड़ोस के ईरान और अफगानिस्तान में भी हम इसी - हिन्दी - नाम में पुकारे जाते हैं । हिन्दू सभा वाले अपने भीतर की जातियों को तोड़ने के लिए चाहे उतना उत्साह न भी दिखलाते हों, लेकिन वे मौके-बे-मौके यह घोषणा जरूर कर दिया करते हैं। कि हिन्दू जाति अलग है। मुस्लिम लीग ने तो बीड़ा उठाया है कि मुसलमानों की हमेशा के लिए अलग जाति बनायी जाय । वह तो बल्कि इसी विचार के अनुसार हिन्दुस्तान को अलग हिस्सों में बाँटना चाहती है। नौ करोड़ मुसलमानों में सात करोड़ तो सीधे ही वह खून अपने शरीर में रखते हैं जो कि हिन्दुओं के बदन में है। और, बाकी दो करोड़ में कितने हैं जो कलेजे पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि उनमें चौथाई भी गैर-हिन्दुस्तानी खून है ? जाति का निर्णय खून से होता है। और, इस कसौटी से परखने पर दुनिया का कोई भी आदमी - हिन्दुस्तान से बाहर - हिन्दुस्तान के मुसलमानों को अलग कौम मानने को तैयार नहीं हो सकता। तीन चौथाई अरबी शब्द बोलकर हिन्दुस्तानी मुसलमान न अरब में जाकर हिन्दी छोड़कर दूसरा कहला सकता है और न अरबी जबान को वह अपनी मातृभाषा ही बना सकता है। हमारे नौजवान इस बँटवारे को अधिक दिनों तक बर्दाश्त नहीं कर सकते। नई सन्तानों के लिए तो अच्छा होगा कि हिन्दुओं की औलाद अपने नाम मुसलमानी रक्खे, और मुसलमानों की औलाद अपने नाम हिन्दू रक्खे, साथ ही मजहबों की जबर्दस्त मुखालफत की जाय । सूरत - शकल के बनावटी भेद को भी मिटा दिया जाय। इस प्रकार मजहब के दीवानों को हम अच्छी तालीम दे सकते हैं। निश्चय है कि जात-पाँत की क्षय करने से हमारे देश का भविष्य उज्जवल हो सकता है। -