पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/६३

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64 / जाति क्यों नहीं जाती ? "" मौलाना- "रोटी तक तो हम आपके साथ हैं, लेकिन बेटी में नहीं। पास ही एक पण्डितजी बैठे हुए थे जो बातचीत से वकील मालूम होते थे। वह झट बोल उठे – “आप लोग तो दूसरे मुल्कों के साँचे में हिन्दुस्तान को भी ढालना चाहते हैं। आप लोग यह सोचने की तकलीफ गवारा नहीं करते कि हिन्दुस्तान धर्म-प्राण मुल्क है, इसकी सभ्यता और संस्कृति निराली है। भारत यूरोप नहीं हो सकता। रोटी की तो बात, खैर, एक होती देखी जा रही है, लेकिन बेटी एक होने की बात कह कर तो आप शेखचिल्ली को भी मात करते हैं।" मैं—“कुछ बरसों पहले रोटी की एकता भी शेखचिल्ली की ही बात थी। खैर, आज आप उसे तो कबूल करते हैं न ? बेटी की भी बात शेखचिल्ली की नहीं । बीस बरस पहले के चौके-चूल्हे को देखकर किसको आशा थी कि हमें आज का दिन देखना पड़ेगा? हिन्दू खुल्लम-खुल्ला मुसलमान और ईसाई के साथ खाना खाते हैं, लेकिन बिरादरी की मजाल है कि उनसे नाता- रिश्ता तोड़ें ? हिन्दू-मुसलमान की शादियाँ होनी शुरू हो गई हैं। पंडित जवाहरलाल की भतीजी ने मुसलमान से शादी की है और बिना कलमा पढ़े । आसफ अली की बीवी अरुणा ने इस्लाम धर्म को स्वीकार नहीं किया। प्रोफेसर हुमायूं कबीर ने भी इसी तरह की शादी बंगाल में की है। ऐसी मिसालें दर्जनों मिलेंगी जिनमें हिन्दू युवतियों ने बिना मजहब बदले शादियाँ की हैं। हिन्दू नवयुवक भी धर्म की जंजीर तोड़ कर शादी करने लग गये हैं। गोरखपुर के श्री श्यामाचरण शास्त्री ने बिना शुद्धि के मुसलमान लड़की से शादी की है। गुजरात के एक संभ्रान्त कुल के हिन्दू युवक ने एक प्रतिष्ठित मुसलमान-कुल की सुशिक्षिता लड़की से शादी की है। यह निश्चित है कि दिन-प्रतिदिन ऐसे ब्याहों की संख्या बढ़ती ही जायेगी। समाज के जबर्दस्त बाँध में जहाँ सुई भर का भी छेद हो गया, वहाँ फिर उसका कायम रहना मुश्किल है। "" जात-पाँत तोड़कर एक धर्म के भीतर शादियाँ तो और ज्यादा हैं। लेकिन हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जिस काम को अवश्य करना है, उसे भी लोग बहुत धीमी चाल से करना चाहते हैं। ठोस जातीय एकता हमारे लिए सबसे आवश्यक चीज है और वह मजहबों और जातों की चहारदीवारियों को ढहाकर ही कायम की जा सकती है। हमारी रविश जिस बात को अवश्यंभावी बतला रही है जिसे किये बिना हमारे लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं, उसके करने में इतनी ढिलाई दिखलाना क्या सरासर बेवकूफी नहीं है ? हिन्दुस्तानी जाति एक है। सारे हिन्दुस्तानी, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान, बौद्ध हों या ईसाई, मजहब के मानने वाले हों या न मानने वाले, उनकी एक जाति