पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/६१

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62 / जाति क्यों नहीं जाती ? होना चाहते हैं। सबके पीछे ख्याल है धन को बटोर कर रख देने या उसकी रक्षा का। गरीबों और अपनी मेहनत की कमाई खाने वालों को ही सबसे ज्यादा नुकसान है, लेकिन सहस्राब्दियों से जात-पाँत के प्रति जनता के अन्दर जो ख्याल पैदा किये गये हैं, वे उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति की ओर नजर दौड़ाने नहीं देते। स्वार्थी नेता खुद इसमें सबसे बड़े बाधक हैं । संसार की रविश हमें बतला रही है कि हम अधिक दिनों तक इस जातीय भेदभाव को कायम नहीं रख सकते। दुनिया की चाल को देखकर अब हिन्दुस्तान के अछूत, अछूत रहने को तैयार नहीं हैं - अर्जल (निम्न जाति) अर्जल रहने को तैयार नहीं है। अछूत और अर्जल रखकर सिर्फ उनके साथ अपमानपूर्ण बर्ताव ही नहीं किया जाता, बल्कि आर्थिक स्वतन्त्रता से भी उन्हें वंचित किया जाता । फिर वे कब समाज में सहस्राब्दियों से पहले निर्धारित किये स्थान पर रहना पसन्द करेंगे और आजादी के दीवाने तो इस प्रथा के विरुद्ध जेहाद बोल चुके हैं। वे इसके लिए सब तरह की कुर्बानियाँ करने को तैयार हैं। उनके लिए राजनीतिक युद्ध यह सामाजिक युद्ध कम महत्व नहीं रखता है। वे जानते हैं कि जब तक जातियों की खाइयाँ बन्द न की जायेंगी, तब तक जातीय एकता की ठोस नींव रखी नहीं जा सकती । वे जानते हैं कि इस बात में मजहब उनका सबसे बड़ा बाधक है, लेकिन वे मजहब की परवाह कब करने वाले हैं। वे जात-पाँत के साथ हिन्दू धर्म को एक ही डंडे से मारकर समुद्र में डुबायेंगे । देखने में जात-पाँत की इमारत मजबूत मालूम होती है, लेकिन इससे यह न समझना चाहिए कि उसकी नींव पर करारी चोट नहीं लग रही है । जातीय भेद के दो रूप हैं – एक, रोटी में छूत-छात, दूसरे, बेटी में असहयोग । रोटी में छूत छात की बात उन्हीं धनिकों ने सबसे पहले तोड़नी शुरू की जो अपने स्वार्थ को अक्षुण्ण रखने के लिए जातीय संगठनों और जातीय एकताओं के सबसे बड़े पोषक थे। धन उनके पास था और विलायत जाने के लिए सबसे पहले वे ही तैयार हुए। जहाँ पहले विलायत जाने वाले जात से बहिष्कृत किये जाते थे, वहाँ आज वे ही जात के चौधरी हैं। दरभंगा बीकानेर को ही नहीं, दूसरी जातियों के अगुवों को भी देख लीजिए । सभी जगह विलायत में सब तरह के लोगों के साथ, सब तरह का खाना खाकर लौटे हुए लोग ही आज नेता के पद पर शोभित हैं। आई०सी० एस० दामाद पाने वाला ससुर अपने को निहाल समझता है। पिछले बीस बरसों में रोटी की एकता बड़ी तेजी के साथ कायम हो रही है। 1921 से पहले हिन्दू होटल शायद ही कहीं दिखलाई पड़ते थे। लेकिन आज छोटे-