पृष्ठ:जाति क्यों नहीं जाती.pdf/५९

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60 / जाति क्यों नहीं जाती ? रहना चाहिए, वहाँ एक जाति के कंधे पर सारी जिम्मेदारी दे देना बड़ी खतरनाक बात थी। राजपूत जाति ने जहाँ तक सैनिक उत्साह का सम्बन्ध है, अपने को अयोग्य नहीं साबित किया, तो भी सिर्फ देश रक्षा की बात नहीं रह गई, वहाँ तो उसके साथ-साथ राजशक्ति का प्रलोभन भी उनमें बहुत बड़ा था और इसी के लिए आपस में वे बराबर लड़ने लगे। उनके सामने मुख्य बात थी खास-खास राजवंशों की रक्षा करना। राजवंशों के पारस्परिक वैमनस्य- जो कि राजशक्ति को हथियाने के कारण ही था— उन्होंने राष्ट्रीय सैनिक शक्ति को अनेकों टुकड़ों में बाँट दिया और वे एकसाथ होकर विदेशियों से न लड़ सके। यदि जात-पाँत न होती तो और मुल्कों की तरह सारे हिन्दुस्तानी देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ते। जातीय एकता के कारण छोटे-छोटे मुल्क बहुत पीछे तक अपनी स्वतंत्रता कायम रखने में समर्थ हुए। इतना भारी देश हिन्दुस्तान जबकि बारहवीं शताब्दी में ही परतन्त्र हो गया, लंका (सीलोन) का छोटा टापू जिसकी आबादी अब भी पचास लाख के करीब है- 1814 तक परतन्त्र न हुआ था। बर्मा तो उससे साठ-बरस और पीछे तक आजाद रहा है। हिन्दुस्तान के पड़ोस के इतने छोटे-छोटे मुल्क इतने दिनों तक अपनी स्वतंत्रता को क्यों कायम रख सके, और आज भी अफगानिस्तान जैसे देश क्यों आजाद हैं। इसलिए कि वहाँ जाति इतने टुकड़ों में विभक्त नहीं है। वहाँ ऊँच-नीच का भाव इतना नहीं फैला है और देश के सभी निवासी अपनी स्वतंत्रता के लिए क्षत्रिय बनकर कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ सकते हैं। — हिन्दुस्तान के इतिहास में कई बार ऐसा समय आया जबकि देश की स्वतन्त्रता फिर लौटी आ रही थी। लेकिन हमारी पुरानी आदतों ने वैसा होने नहीं दिया । शेरशाह के वंश के राजमंत्री बहादुर हेमचन्द्र ने एक बार चाहा क्या, दिल्ली के तख्त पर बैठ भी गया, लेकिन राजपूतों ने बनिया कहकर उसका विरोध किया। दूरदर्शी सम्राट अकबर ने सारे भारत को एक जाति में लाने का स्वप्न देखा, लेकिन उसका वह स्वप्न, स्वप्न ही रह गया। और उसके बाद के हिन्दू मुसलमानों ने कभी उस जातीय एकता के ख्याल को फूटी आँखों देखना पसन्द नहीं किया। अंग्रेजों के हाथ में जाने से पहले भारत में सबसे बड़ा साम्राज्य मराठों का था, लेकिन वह भी ब्राह्मण-अब्राह्मण के झगड़ों के कारण चूर-चूर हो गया। हमारे पराभव का सारा इतिहास बतलाता है कि हम इसी जाति भेद के कारण इस अवस्था तक पहुँचे। आधी शताब्दी से अधिक बीत गई जब से कांग्रेस ने जातीय एकता कायम करने का बीड़ा उठाया। जो कुछ थोड़ी-बहुत एकता कायम करने में वह सफल हुई है, उसका फल भी हम देख रहे हैं और दो प्रान्तों को छोड़कर बाकी सभी प्रान्तों के